नीमच। ब्लैक गोल्ड के नाम से मशहूर अफीम को यूं ही इस नाम से नहीं जाना जाता है. किसानों को इसकी बुआई से लेकर तौल तक इसे सोने की तरह ही सहेजना पड़ता है. खासकर उस समय जब डोडों में चीरा लगना शुरू होता है और ये वही सीजन है. इस सीजन में किसानों को कई बातों का ध्यान रखना होता है. जिसमें सबसे खास है खेतों की रखवाली. इस काम के लिए किसान तो रात-दिन खेत की पहरेदारी करते ही हैं, स्थानीय पुलिस भी इस काम में उनका पूरा साथ देती है.
डोडों मे चीरा लगाने की तैयारी
चीरा लगाने से पहले किसान खेत पर पूरे विधि-विधान से मां कालका की पूजा करते हैं. उसके बाद ही खेत में घुसकर चीरा लगाना शुरू करते हैं. डोडों में चीरा लगाने का वक्त भी निश्चित होता है. चीरा लगाने के लिए जरूरी है कि तापमान ज्यादा हो, लिहाजा दिन में ही चीरा लगाया जाता है. ये काम कुशल और अनुभवी श्रमिक ही करते हैं. जब अफीम की फसल अपने पूरे यौवन पर होती है. तब देखा जाता है कि डोडा पूरी तरह कठोर हो चुका है कि नहीं. जिसके बाद उसमें चीरा लगाने की तैयारी की जाती है. डोडों में चीरा लगाने के लिए एक खास औजार के इस्तेमाल किया जाता है, जिसे नुक्का कहा जाता है.
चीरा लगाकर के बाद डोडा को छोड़ दिया जाता है. रात बीतने के बाद अगले दिन अल सुबह ही अफीम के दूध का कलेक्शन शुरू हो जाता है. अफीम के दूध कलेक्शन को स्थानीय भाषा में लुवाई कहते हैं. लुवाई के बाद अफीम को एक बर्तन में इकट्ठा किया जाता है. जिसमें अगर नमी होती है तो छाव में सुखाया जाता है. उसके बाद किसान इसे नारकोटिक्स विभाग को बेच देते हैं.