झाबुआ।जिले के हाईप्रोफाइल इलाके मेंमतदान हो चुका है. अब सबको नतीजे के लिए 3 दिसंबर का बेसब्री से इंतजार है. इस बार के चुनाव परिणाम झाबुआ जिले की तीनों विधानसभा के कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों का भविष्य तय करने वाले साबित होंगे. हार जहां उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लगाने वाली साबित होगी, तो वहीं जीत न केवल उनका कद बढ़ाएगी, बल्कि उनकी सियासत को भी आगे लेकर जाएगी.
इस चुनाव में यदि झाबुआ विधानसभा के प्रत्याशियों को छोड़ दें, तो थांदला और पेटलावद दोनों विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की उम्र 55 साल या इससे अधिक है. ऐसे में बढ़ती उम्र और हार के बाद ये संभव कि पार्टी संगठन उन प्रत्याशियों से किनारा कर ले और 2028 के चुनाव के लिए नए विकल्प की तलाश में जुट जाए. हालांकि, राजनीतिक समीकरण कब किस तरफ मुड़ जाए, यह नहीं कहा जा सकता.
परिणाम तय करेंगे इन नेताओं का भविष्य
1. झाबुआ विधानसभा
डॉ विक्रांत भूरिया: युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इनके साथ ही इनके पिता कांतिलाल भूरिया की साख दांव पर लगी है. वैसे भी झाबुआ सीट पर सबकी निगाह रहती है, क्योंकि यहां के परिणाम प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर डालते हैं.
- जीत के मायने:यदि डॉ विक्रांत भूरिया जीत हासिल करते हैं, तो एक तरह से वे कांतिलाल भूरिया की विरासत को आगे लेकर जाएंगे. कांतिलाल भूरिया की उम्र काफी हो चुकी है और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी उनके राजनीति से सन्यास की बात कह चुके हैं. ऐसे में विक्रांत की जीत उन्हें पिता की छवि से बाहर निकलकर खुद को स्थापित करने में अहम साबित होगी.
- हार के मायने: डॉ विक्रांत की हार न केवल उनकी छवि पर असर डालेगी, बल्कि उनके पिता कांतिलाल भूरिया के लिए भी सवालिया निशान लगाने का काम करेगी. हार से पिता और पुत्र दोनों का राजनीतिक कद कम होगा. क्योंकि, अपने गृह क्षेत्र में जब ये हार होती है, तो संगठन स्तर पर इसकी समीक्षा होना तय है.
भानू भूरिया: बीजेपी के कद्दावर नेता कह जाने वाले भानू भूरिया काफी कम उम्र में भाजपा जिलाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 2019 के उप चुनाव में पार्टी ने इन्हें मैदान में उतारा था. हालांकि, उस वक्त कांग्रेस सत्ता में थी. इसके बावजूद वे 68 हजार 351 मत लेकर आए थे. इस बार फिर से भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है.
- जीत के मायने:यह जीत भानू को राजनीतिक रूप से स्थापित करने का काम करेगी. साथ ही पार्टी में उनके विरोधियों के लिए भी करारा जवाब साबित होगी.
- हार के मायने: भानू को टिकट दिए जाने पर सवाल उठा रहे भाजपा नेताओं को बोलने का मौका मिल जाएगा. ये भी सम्भव है कि हार के बाद उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लग जाए.