इंदौर/औरंगाबाद।दिवंगतपूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयासों के चलते पाकिस्तान से आई मूक-बधिर गीता को उसकी मां मिल गई है. हालांकि अब भी दोनों के रिश्तों की पुष्टि होने में डीएनए टेस्ट की दूरी रह गई है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो लंबे समय से चली आ रही गीता के परिवार की तलाश पूरी हो सकती है. गीता को लगभग 5 साल पहले 26 अक्टूबर 2015 को सुषमा स्वराज की पहल पर पाकिस्तान से इंदौर लाया गया था. वह पांच साल तक इंदौर में रही. कुछ समय तक मूक-बधिर संगठन में अस्थायी आश्रय मिला, फिर 20 जुलाई 2020 से गीता आनंद सर्विस सोसायटी के साथ थी. मूल रूप से गीता कहां की थी और उसके मां-बाप कौन हैं, इसके लिए आनंद सर्विस सोसायटी के ज्ञानेंद्र पुरोहित और उनकी पत्नी मोनिका ने लगातार खोज जारी रखी और आखिरकार वे यह जानने में सफल रहे कि गीता महाराष्ट्र के परभणी से लापता हुई थी. उसी के आधार पर गीता को जनवरी माह में महाराष्ट्र ले जाया गया था. अब औरंगाबाद के वाजुल की मीना पांद्रे ने दावा किया है कि गीता उनकी बेटी है. उन्होंने गीता के पेट पर जलने का निशान होने की पहचान भी बताई, जो सच है.
- डीएनए टेस्ट के बाद मिल सकता है खोया परिवार
मोनिका पुरोहित ने कहा कि, "बेटी को किस अंग में क्या चोट लगी है, इसे सबसे पहले मां ही जानती है. मीना ने गीता के शरीर पर जलने के जिस स्थान के बारे में बताया है, वह सही है. अब मां और बेटी के रिश्ते की पुष्टि होने के लिए केवल डीएनए टेस्ट होना ही बाकी है." ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित ने कहा कि गीता ने उन्हें बताया था कि वह जिस जगह पर रहती थी, वहां के रेलवे स्टेशन पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखा होता था. साथ ही उसके घर के पास गन्ने और मूंगफली की खेती भी होती थी. इस बात से यह पुष्टि हुई थी कि गीता महाराष्ट्र की रहने वाली है. साथ ही गीता ने यह भी बताया था कि वह एक ऐसी ट्रेन में बैठी थी, जिसका एक जगह इंजन बदला जाता है और दूसरी जगह पहुंचने के बाद जब उसने ट्रेन बदली तो वह पाकिस्तान पहुंच गई थी.