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रेलवे को हो रहा राजस्व का भारी नुकसान, नहीं हो रही फूड आइटम्स की बिक्री

होशंगाबाद में प्लेटफार्म पर पानी और अन्य फूड आइटम्स की बिक्री ना होने के कारण ठेकेदारों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. कोविड 19 के कारण रेल विभाग द्वारा जो दिशा निर्देश जारी हुए हैं. उसके तहत ही प्लेटफार्म पर फूड आइटम्स बिक रहे हैं. वहीं यात्री भी कोरोना से बचाव के लिए बाहरी फूड आइटम्स से परहेज कर रहे हैं.

empty shop in hoshangabad
प्लेटफार्म पर खाली पड़ी दुकान

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Published : Oct 9, 2020, 3:12 PM IST

होशंगाबाद। प्रदेश के सबसे बडे़ रेलवे जंक्शन का दर्जा प्राप्त इटारसी रेलवे को राजस्व का एक बड़ा फूड आइटम्स के ठेकेदारों से मिलता है, लेकिन पिछले सात माह के लॉकडाउन में रेलवे प्लेटफार्म पर गिनी चुनी ट्रेनें आ रही हैं. प्लेटफार्म पर पानी एवं सूखा खानपान बिक्री ना होने के कारण ठेकेदारों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जिससे आगामी वर्ष में लायसेंस रिन्यू कराने में ठेकेदार अपना हाथ खींच रहे हैं.

कोविड 19 के कारण रेल विभाग द्वारा जो दिशा-निर्देश जारी हुए हैं. उसके तहत ही प्लेटफार्म पर खानपान सामग्री बिक रही है. वहीं यात्री भी कोरोना से बचाव के लिए तत्काल निर्मित खानपान सामग्री से परहेज कर रहे हैं. जिससे रेलवे के खजाने पर गहरी मार पड़ रही है. कोरोना महामारी को देखते हुए 25 मार्च से देश दुनिया के साथ रेल के पहिए भी थम गए थे. अगस्त माह के शुरुआत से धीरे-धीरे कुछ ट्रेनों के पहिए चलना शुरू हुए, लेकिन उसमें यात्रियों की संख्या पूर्व की तुलना में बीस से तीस प्रतिशत ही दिखाई दे रही है. जहां इटारसी रेलवे स्टेशन से प्रतिदिन 200 से अधिक ट्रेनें गुजरती थी, लेकिन वर्तमान दौर में पच्चीस से तीस कुल ट्रेनें प्लेटफार्म से आ जा रही हैं.

ट्रेनों की संख्या में कमी के साथ यात्रियों की संख्या काफी घट गई है, जिससे प्लेटफार्म पर दो-दस यात्री ही उतर पाते हैं और वह भी खानपान सामग्री खरीदने में कोरोना संक्रमण के चलते डरते नजर आते हैं. ऐसी स्थिति में खानपान ठेकेदार पर आर्थिक तंगी की तलवार लटकती नजर आ रही है, जिसके भय से ठेकेदार अपना लायसेंस रिन्यू कराने अथवा नया टेंडर डालने से घबरा रहे हैं. एक युवा खानपान ठेकेदार ने बताया कि उसने हाल ही में मुंबई की यात्रा की थी. ट्रेन में देखा कि यात्री ट्रेन के अंदर और प्लेटफार्म पर खानपान सामग्री खरीदने में परहेज कर रहे हैं. खानपान ठेकेदारों का बुरा हाल है, रेलवे को राजस्व का बड़ा हिस्सा खानपान ठेकेदारों से मिलता है. यदि ठेकेदारों ने अपना हाथ खींच लिया तो रेल प्रशासन को एक बड़ी आर्थिक क्षति हो सकती है.

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