दमोह।देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले जिले के अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खेमचंद बजाज का आज निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ शनिवार को किया जाएगा. घटना की सूचना मिलते ही उनके निवास पर लोगों की भीड़ जमा हो गई. वहीं तहसीलदार ने पहुंचकर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित किए.
1942 के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने वाले खेमचंद बजाज का आज निधन हो गया. वह 96 वर्ष के थे. सागर जिले की रहली तहसील के छोटे से ग्राम बलेह में 10 फरवरी 1927 को जन्में बजाज कम उम्र में ही गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए. 1942 में जब गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का नारा दिया. तब खेमचंद बजाज मात्र अपनी 15 वर्ष की वय में ही अपने 32 साथियों के साथ रहली पहुंच गए. वहां उन्होंने तहसील कार्यालय पर भारतीय झंडा फहरा दिया. उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे भी लगाए. जिसके फलस्वरुप ब्रिटिश हुकूमत ने बजाज सहित उन सभी 32 सेनानियों और अन्य साथियों को भी बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया. अंग्रेज उन्हें ज्यादा समय तक बंदी नहीं रख सके. लगातार बढ़ते आंदोलन के कारण सभी को रिहा करना पड़ा. रिहा होते ही उन्होंने फिर से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी.
हाल ही में मनाया था जन्मदिन
खेमचंद बजाज के पिता कमलचंद्र और मां का नाम खिलौनाबाई था. उनकी एकमात्र बहन थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है. खेमचंद बजाज के 5 बेटे और 5 बेटियां हैं. जिसमें से सबसे बड़े बेटे और बेटी की मौत हो चुकी है. जबकि तीन बेटे दमोह में रहकर ही गल्ले का कारोबार करते हैं. एक बेटा इंदौर में है. उनके दूसरे बेटे वीरेंद्र बजाज बताते हैं कि वह पूरी तरह स्वस्थ थे, हाल ही में उनका 94 वां जन्मदिन मनाया था.
अंतिम सेनानी ने ली आखरी सांस
दमोह जिले में करीब 156 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए हैं. जिनमें आखरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में खेमचंद बजाज ही बचे थे. बाकी के सभी सेनानी और उनके साथी समय के साथ संसार को अलविदा कह गए. आज बजाज के निधन के साथ ही दमोह जिले की धरती स्वतंत्रता सेनानियों से रिक्त हो गई.