दमोह।कहने को आज हम 21वीं सदीं में जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन आज भी जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियां हमारे साथ चल रही हैं. इसका एक उदाहण दमोह के हनौती से सामने आया है. दरअसल जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हिनौती पिपरिया पंचायत के हिनौती गांव में लोग जातिवाद और छुआछूत के चलते 1 ही तालाब के 4 अलग-अलग घाटों से पानी भर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने यह व्यवस्था बनाई थी, उन्हीं का पालन कर हम भी आज ऐसे ही पानी का उपयोग करते हैं. खास बात ये है कि गांव के लोग यहां तक कि सरपंच भी जातिवाद और छुआछूत जैसी बातों को सिरे से नकार रहे हैं.
लोगों के लिए छुआछूत, हमारे लिए परंपरा:2020 की आबादी वाले इस गांव में एक तालाब बना हुआ है, यही लोगों के निस्तार एवं पानी का एकमात्र बड़ा माध्यम है. ढाई एकड़ में फैले इस तालाब पर 4 घाट हैं. जो वर्ण व्यवस्था के हिसाब से बने हैं, लेकिन पंचायत के लोग इसे ना तो वर्ण व्यवस्था मानते हैं और ना ही छुआछूत. इससे उलट वे इसे पूर्वजों द्वारा बनाई गई परंपरा बताते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि,"कई पीढ़ियों पहले लोगों ने अपनी-अपनी जातियों एवं सुविधा के हिसाब से तालाब पर घाट बांट लिए थे, अब उन्हीं घाटों से संबंधित जाति के लोग पानी लेते हैं. लोग इसे जातिवाद और छुआछूत का नाम देते हैं, लेकिन हम इसे एक परंपरा मानते हैं."
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कैसे हुआ जाति के हिसाब से बंटवारा: गांव के बाशिंदों का कहना है कि उनके पुरखों ने सदियों पहले ही हनौती में घाटों का बंटवारा कर दिया था. सारे घाट एक लाइन से बनाए गए हैं और लोग इनका आज भी समाज के बनाए नियमों के मुताबिक ही करते हैं.
- पहला घाट ठाकुर समुदाय को दिया गया है. इसे लोधी, राजपूत, आदिवासी समाज के लोग इस्तेमाल में लाते हैं. अपने कपड़े से लेकर बाकी के काम पहले घाट पर ही करते हैं.
- दूसरा घाट प्रजापति समुदाय का है. दावा है कि इस समुदाय और इसके लोगों ने कभी भी किसी दूसरी जाति के घाट का इस्तेमाल नहीं किया. इनकी आबादी भी काफी कम है.
- बंसल और अहिरवार समुदाय के घाट अगल-बगल बने हैं. इनमें दूरी काफी कम है, बावजूद इसके पुरखों के बनाए नियमों का काफी कड़ाई से ये पालन करते हैं. युवा भी नियम नहीं तोड़ते.
हीनौती की आबादी कितनी है: गांव करीब 2020 की आबादी का है और इसमें सबसे ज्यादा ठाकुर समुदाय के लोग हैं. इसके बाद बाकी की जाति के लोग हैं. पटेल, यादव, ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां नहीं रहते, मगर कभी कभार किसी काम से आते भी हैं तो वो तालाब के नियमों को नहीं तोड़ते.
- ठाकुर समुदाय के 1250 (लोधी, राजपूत, आदिवासी शामिल)
- अहिरवार - 450
- बंसल - 250
- प्रजापति - 25
- आदिवासी समुदाय के लोगों की आबादी 45