छिंदवाड़ा। खूनी खेल के नाम से विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले के जनक राजा जाटबा नरेश की समाधि जर्जर हो चुकी है, 400 साल पुरानी इस समाधि की स्थिति हर दिन बिगड़ती जा रही है. जिसकी न तो शासन और न ही समाज सुध ले रहा है. ये प्राचीन समाधि महज एक चबूतरा बनकर रह गया है.
राजा जाटबा नरेश की समाधि हो चुकी जर्जर पांढुर्णा में सालों से पोला त्योहार के दूसरे दिन खूनी खेल के नाम से विख्यात पत्थरों का खेल खेला जाता है. चंडिका देवी को लहू देने के बाद लोग पलाश के झंडे की पूजा करते हैं. फिर उस झंडे को जाम नदी पर स्थापित कर दोनों ओर से लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते हैं. एक-दूसरे को लहूलुहान करने की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और इस खूनी परंपरा को हजारों लोग निभा रहे हैं.सदियों पुरानी इस परंपरा के जनक जाटबा नरेश की समाधि जर्जर होकर महज एक चबूतरे में बदलती जा रही है, जबकि पांढुर्णा के पूर्व विधायक ने अपने कार्यकाल में एक लाख रुपए की विधायक निधि से नये भवन का निर्माण कराया था, लेकिन राजा की समाधि का सुध लेने वाला कोई नहीं है.सदियों पुरानी गोटमार परंपरा के पीछे की वजह लोग बताते हैं कि सदियों पहले पांढुर्णा का एक युवक सावरगांव की युवती पर मोहित हो गया था, लेकिन दोनों पक्ष विवाह के लिए राजी नहीं थे, पर दोनों श्रावण अमावस्या के दूसरे दिन अल सुबह विवाह बंधन में बंधने के लिए घर से भाग निकले, तभी दोनों पक्ष उन्हें रोकने लगे, पर जब वे नहीं माने तो विवाद की स्थिति बन गई, और देखते ही देखते सावर गांव और पांढुर्णा के लोगों ने एक दूसरे पर पथराव कर दिया, जिसमें प्रेमी युगल की मौत हो गयी, इसलिए उन्हीं की याद में श्रावण अमावस्या और पोला त्योहार के दूसरे दिन ये खूनी गोटमार का खेल खेला जाता है.