छतरपुर।चुनाव जीतने के लिए नेता तमाम तरह के लुभावने वादे करते हैं, लेकिन हकीकत में इन बातों का आधार न के बराबर होता है. कुछ ऐसा ही आलम छतरपुर जिले के गढ़ी मलहरा और महाराजपुर में देखने को मिल रहा है. जहां के पान उत्पादक किसानों की समस्या 2018 के चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा रहा लेकिन सरकारें गिराने और बनाने के चक्कर में इन किसानों को भूला दिया गया और अब कोरोना का कहर झेल चुके किसानों के हालात जस के तस बने हैं.
लाखों का घाटा
पान किसानों का कहना है कि आज भी मंडियों में पान के अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं, जिस वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. लॉकडाउन ने पहले ही पान किसानों की कमर तोड़ रखी है, जिस कारण इस दौर में किसानों को 5 लाख से लेकर 15 लाख रुपए तक का नुकसान हो गया है और अब उसकी भरपाई के लिए उन्हें 4 से 5 साल का समय लग जाएगा, वो भी अगर बाजार मिला और सरकार ने सहयोग किया तो.
पान की खेती को नहीं है कृषि का दर्जा
पान की खेती को आज भी कृषि का दर्जा प्राप्त नहीं है. इसके लिए कई क्षेत्रीय किसान नेता कई सालों से लगातार संघर्षरत हैं. लेकिन आज तक पान की खेती को कृषि का दर्जा नहीं मिल सका है. हालांकि चुनावी माहौल में हमेशा से पान की खेती एवं पान किसानों की समस्याएं नेताओं को लुभाती रही हैं. यही वजह है कि चुनाव आने से पहले नेता की खेती करने वाले किसानों से बड़े-बड़े वादे कर जाते हैं.
पान की खेती जोखिम का काम
पान की खेती पर दो साल तक शोध करने वाले अनिल चौरसिया बताते हैं कि यह जोखिम भरी खेती है. इसकी खेती के जरिए लाभ लेना इतना आसान नहीं है. प्रकृति की मार और कई बार प्रशासन की बेरुखी पान किसानों के लिए मुसीबतें पैदा कर देती है. अनिल चौरसिया की माने तो पान खेती में मेहनत बेहिसाब है, फायदा भी लेकिन घाटा हुआ तो वो भी बेहिसाब होता है.
उपचुनाव के बाद किसान को आस