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Published : Nov 8, 2020, 9:40 PM IST

Updated : Nov 8, 2020, 9:52 PM IST

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पान किसान अब भी परेशान, चुनावी शगूफा साबित हुए नेताओं के वादे

छतरपुर जिले के गढ़ी मलहरा और महाराजपुर में पान की खेती करने वाले किसान कोरोना की मार से अब भी नहीं उबर पा रहे हैं, वहीं 2018 के चुनावों किए गए नेताओं के वादे भी अब किसी मजाक से कम नहीं लग रहे हैं.

Pan farmers are still in trouble
पान किसान अब भी बदहाल

छतरपुर।चुनाव जीतने के लिए नेता तमाम तरह के लुभावने वादे करते हैं, लेकिन हकीकत में इन बातों का आधार न के बराबर होता है. कुछ ऐसा ही आलम छतरपुर जिले के गढ़ी मलहरा और महाराजपुर में देखने को मिल रहा है. जहां के पान उत्पादक किसानों की समस्या 2018 के चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा रहा लेकिन सरकारें गिराने और बनाने के चक्कर में इन किसानों को भूला दिया गया और अब कोरोना का कहर झेल चुके किसानों के हालात जस के तस बने हैं.

पान किसान अब भी परेशान

लाखों का घाटा
पान किसानों का कहना है कि आज भी मंडियों में पान के अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं, जिस वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. लॉकडाउन ने पहले ही पान किसानों की कमर तोड़ रखी है, जिस कारण इस दौर में किसानों को 5 लाख से लेकर 15 लाख रुपए तक का नुकसान हो गया है और अब उसकी भरपाई के लिए उन्हें 4 से 5 साल का समय लग जाएगा, वो भी अगर बाजार मिला और सरकार ने सहयोग किया तो.

पान की खेती को नहीं है कृषि का दर्जा

पान की खेती को आज भी कृषि का दर्जा प्राप्त नहीं है. इसके लिए कई क्षेत्रीय किसान नेता कई सालों से लगातार संघर्षरत हैं. लेकिन आज तक पान की खेती को कृषि का दर्जा नहीं मिल सका है. हालांकि चुनावी माहौल में हमेशा से पान की खेती एवं पान किसानों की समस्याएं नेताओं को लुभाती रही हैं. यही वजह है कि चुनाव आने से पहले नेता की खेती करने वाले किसानों से बड़े-बड़े वादे कर जाते हैं.

पान की खेती जोखिम का काम

पान की खेती पर दो साल तक शोध करने वाले अनिल चौरसिया बताते हैं कि यह जोखिम भरी खेती है. इसकी खेती के जरिए लाभ लेना इतना आसान नहीं है. प्रकृति की मार और कई बार प्रशासन की बेरुखी पान किसानों के लिए मुसीबतें पैदा कर देती है. अनिल चौरसिया की माने तो पान खेती में मेहनत बेहिसाब है, फायदा भी लेकिन घाटा हुआ तो वो भी बेहिसाब होता है.

उपचुनाव के बाद किसान को आस

चौरसिया समाज के प्रदेश अध्यक्ष राजेश महतो ने बताया कि पान विकास निगम और पान विकास बोर्ड बनवाने के लिए 2018 के चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बात की, लेकिन कांग्रेस सरकार ने 15 महीने सत्ता में रहने तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. अब उचुनाव के परिणामों के बाद बनने वाली सरकार से आशा है कि वो पान किसान की समस्या के बारे में कुछ सोचेगी.

2018 के चुनाव में था मुद्दा

गढ़ी मलहरा और महाराजपुर में पान की पैदावार सबसे अधिक होती है. यहां के लगभग 95 फीसदी जनता आज भी पान की खेती पर निर्भर है. इनके पास पान की खेती के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है. 2018 के चुनावों से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि जल्द से जल्द पान विकास निगम बना दिया जाएगा. तो वहीं कमलनाथ ने भी अपने घोषणा पत्र में पान विकास निगम बनाने की बात कही थी, लेकिन दोनों के ही वादे राजनैतिक साबित हुए.

पान खाने के हैं कई फायदे

वैसे तो पान लोग मुंह की शुद्धि ( Mouth freshener) के लिए खाते हैं, लेकिन पान के कई वैज्ञानिक और स्वास्थ्यवर्धक लाभ भी हैं. शोधकर्ता अनिल चौरसिया बताते हैं कि पान खाने से पाचन शक्ति ठीक होती है. पेट की कई बीमारियों में भी पान का पत्ता लाभकारी होता है. इसके अलावा हड्डी के कई रोगों में भी पान के पत्ते का प्रयोग किया जाता है. सनातन पूजा-पाठ में भी पान का अपना एक अलग महत्व है.

पान की खेती करने वाले किसानों की समस्याओं को लेकर ईटीवी भारत लगातार किसानों के बीच में जाकर उनकी समस्याओं को दिखाता रहा है. महाराजपुर विधायक नीरज दीक्षित से लेकर प्रभारी मंत्री एवं कृषि मंत्री तक इस संबंध में सवाल किए हैं, लेकिन पान की खेती करने वाला किसान आज भी परेशान हैं. पान किसान आज भी अपने नसीब में मिले संघर्ष और नेताओं के चुनावी गुब्बारों के बीच खेती कर रहा है.

Last Updated : Nov 8, 2020, 9:52 PM IST

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