गुजरात।देश की सेवा करने के लिए यूनिफॉर्म में होना जरूरी नहीं है, जरूरी है तो देश प्रेम. भारत में ऐसे कई नागरिक हैं, जिन्होंने सेना का हिस्सा न होने के बावजूद देश की रक्षा की. गुजरात के रणछोड़ दास रबारी ऐसे ही एक नागरिक हैं, जिनका देश प्रेम इतिहास के सुनहरे पन्ने में दर्ज है.
1965 और 1971 की लड़ाई में निभाई अहम भूमिका
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 और 1971 की लड़ाई में रणछोड़ दास ने भारतीय सेना को गाइड करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रणछोड़ पाकिस्तान बार्डर से लगे इलाके के चप्पे-चप्पे को बहुत ही अच्छी तरह से जानते थे. इसका फायदा भारतीय सेना का हुआ. उन्होंने 1200 पाकिस्तानियों के छिपे होने के जानकारी इंडियन आर्मी को दी, जो भारतीय सेना के लिए काफी मददगार साबित हुई.
अविभाजित भारत में जन्मे थे रणछोड़ दास
रणछोड़ पगी का जन्म अविभाजित भारत के पाकिस्तान पेठापुर गाठदो गांव में हुआ था. विभाजन के बाद रणछोड़ भारत आ गए और गुजरात के बांसकंठा में रहने लगे. यहां वे चरवाहा का काम करते थे. साल 1965 में पाकिस्तानी सेना ने कच्छ बॉर्डर की विघोकोट चौकी पर कब्जा कर लिया था, जिसमें भारतीय सेना के 100 जवान शहीद हो गए थे.
पहले फील्ड मार्शल ने किया था रणछोड़ दास के साथ डिनर
पाकिस्तानी सेना से बचते हुए रणछोड़ दास ने घुसपैठियों के ठिकाने की जानकारी इंडियन आर्मी को दी. यही नहीं सेना को रास्ता दिखाते हुए पाकिस्तानियों तक पहुंचाया. उनकी सूझबूझ से ही भारतीय सेना युद्ध को जीत सकी. भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ ने उन्हें नायक कहा था और साथ डिनर भी किया.
1965 की लड़ाई में क्या हुआ
बता दें कि साल 1965 में पाकिस्तानी सेना ने कच्छ बॉर्डर पर विघोकोट सीमा से हमला कर दिया. भारतीय सेना ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन इसमें रणछोड़ पगी द्वारा दी गई जानकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रण के इलाके से रणछोड़ भली भांति परिचित थे. उस इलाके की उन्हें पग-पग की जानकारी थी. इस काम मे वे इतने माहिर थे कि क्रीक और रण में पैर के निशान से ही वे घुसपैठियों के बारे में सही-सही जानकारी दे देते थे. इसी जानकारी से 1200 घुसपैठिये पकड़े जा सके थे. 1971 के युद्ध में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी.