भोपाल। केंद्र सरकार ने देश के तमाम राज्यों को राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के तहत 11200 करोड़ रूपया मुहैया कराए हैं. इस फंड का उपयोग सड़कों पर उमड़े प्रवासी मजदूरों को शेल्टर होम बनाकर उनके भोजन पानी की व्यवस्था के लिए किया जा रहा है. ये दावा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया है, जो मध्यप्रदेश में तो कहीं भी नजर नहीं आता है, क्योंकि ध्यप्रदेश से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर लाखों की संख्या में लोग पैदल और साइकिल और अन्य साधनों से चलते हुए नजर आ रहे हैं. भीषण गर्मी में अपने छोटे-छोटे बच्चे और बुजुर्ग माता-पिता को साथ लिए ये लोग तरह-तरह की पीड़ा भोग रहे हैं.
प्रदेश के सीमावर्ती राज्य मजदूरों को अपने इलाके में रुकना नहीं देना चाहते हैं और मध्यप्रदेश इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों को अपने राज्य में प्रवेश करने नहीं देना चाह रहा है. अगर निर्मला सीतारमण के दावे को मानें, तो प्रदेश में कहीं भी सरकार ने ना तो शेल्टर होम बनाए हैं और ना ही मजदूरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम किया है. बल्कि कोशिश की जा रही है कि यह मजदूर राज्य की सीमा में प्रवेश ना करें.
दरअसल देश के मध्य में बसा मध्यप्रदेश कोरोना लॉकडाउन के समय प्रवासी मजदूरों का हॉटस्पॉट बन गया है. उत्तर से दक्षिण या दक्षिण से उत्तर,पश्चिम से पूरब या फिर पूरब से पश्चिम जाने वाले सभी मजदूर मध्यप्रदेश की धरती से गुजर रहे हैं. प्रदेश की दूसरे प्रदेशों से लगी जिस सीमा पर जाएं, तो आपको अलग तरह के नजारे देखने को मिलेंगे. गुजरात से लगी झाबुआ जिले की सीमा पर हजारों की संख्या में मजदूर मध्यप्रदेश में प्रवेश करना चाह रहे हैं, लेकिन पुलिस उन्हें अंदर प्रवेश नहीं करने दे रही है.
परेशान मजदूर पत्थरबाजी कर रहा है, तो पुलिस डंडे बरसा रही है. राजस्थान से लगी प्रदेश की सीमा पर नजारा यह है कि मजदूरों की आवाजाही तो छोड़िए,पुलिस सीमा विवाद को निपटाने में लगी है. ऐसे ही नजारे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों की सीमा में देखने मिल रहे हैं. वहीं जो केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का दावा है कि एसडीआरएफ फंड के तहत मजदूरों के लिए शेल्टर होम और खाने-पीने का इंतजाम किया गया है, वह मध्यप्रदेश में तो कहीं कहीं भी नजर नहीं आ रहा है.
कांग्रेस की चुनौती