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International Forest Fair: कंपनी और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के उत्पादकों को साथ लाना मेले का उद्देश्य- विजय शाह - वन मंत्री विजय शाह

राजधानी भोपाल में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय वन मेले का शुभारंभ किया गया. (International Forest Fair Organized in Bhopal) हर साल मध्य प्रदेश सरकार और राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित के इस मेले का आयोजन करती है. पिछले वर्ष कोरोना महामारी के चलते इस मेले का आयोजन नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार 22 दिसंबर से 26 दिसंबर तक मेले का आयोजन किया जा रहा है.

International Forest Fair
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Published : Dec 23, 2021, 7:37 PM IST

भोपाल। राजधानी भोपाल में हर वर्ष आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय वन मेले का शुभारंभ बुधवार को भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में किया गया. इस वन उपज मेले का मुख्य उद्देश्य लोगों को आयुर्वेद के प्रति जागृत करना है, क्योंकि कोरोना काल में आयुर्वेद और जड़ी बूटियों का लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी योगदान रहा है. (International Forest Fair Organized in Bhopal) मध्य प्रदेश शासन ने कोरोना के समय त्रिकूट काठा पूरे प्रदेश में निःशुल्क बटवाया गया था. जिसने लोगों को कोरोना के समय मे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर साबित हुआ था.

कंपनी और उत्पादकों को साथ लाना उद्देश्य

वन मेले में पहुंचे वन मंत्री विजय शाह ने बताया कि जो लोग मध्य प्रदेश में जनजाति स्तर पर आयुर्वेदिक पौधों और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का उत्पादन करते हैं या वृक्षारोपण करते हैं. उन्हें साल भर इस मेले का इंतजार रहता है. इस मेले को करवाने का मुख्य उद्देश्य वन विभाग को पैसा कमाना नहीं, बल्कि जो बड़ी-बड़ी कंपनियां आयुर्वेद और जड़ी बूटियों के क्षेत्र में काम कर रही है उन्हें और औषधि उत्पादन करने वाले लोगों को एक साथ लाना है. ताकि इनके बीच में क्रय-विक्रय को लेकर सीधे बात हो सके.

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मेले में नहीं पहुंच पाई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां

मंत्री विजय शाह ने बताया कि इस मेले में निःशुल्क चिकित्सा परामर्श की भी व्यवस्था की गई है. कुछ अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी इस मेले में आने वाली थी, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर के चलते वे नहीं पहुंच पाई. आयुर्वेद डॉक्टरों के अलावा नाड़ी वैद्य की सुविधा भी यहां उपलब्ध रहेगी. उन्होंने बताया कि जनता के उत्साह को देखते हुए मेले को 2 दिन और बढ़ाया जा सकता है. आजकल शॉपिंग मॉल के चक्कर में मेले का चलन खत्म हो गया है, लेकिन इस तरह के मेलों के आयोजन से मेला सभ्यता भी जिंदा रहेगी.

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