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बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली, जानें कब से शुरू हुआ था रंगों का पर्व - story of holika

दिल से दिल मिलाने और गले से गले मिलने के खास त्‍योहार होली को लेकर हर तरफ खुमारी छाने लगी है. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक ये पर्व कब से मनाया जा रहा है और इसकी शुरूआत कैसे हुई, देखिए ये रिपोर्ट...

history of holi
होली का इतिहास

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Published : Mar 6, 2020, 4:25 PM IST

भोपाल। 10 और 11 मार्च को रंगों का पर्व होली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा. हर काल में इस उत्सव की परंपरा और रंग बदलते रहे हैं. होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको इसका इतिहास और कुछ रोचक तथ्य बताने जा रहा है. वैसे तो होली को लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं. लेकिन इस त्योहार से प्रमुखता से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है.

होली का इतिहास

धार्मिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने हिरणकश्यप नाम के राजा के भाई का वध किया तो हिरणकश्यप ने बदला लेने के लिए कई सालों तक खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए साधना की. सालों के कठोर तप के बाद उसे शक्तिशाली होने का वरदान मिला और वह खुद को भगवान समझने लगा और लोगों पर अत्याचार करने लगा.

हिरणकश्यप का बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा. बेटे प्रहलाद द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज हिरणकश्यप ने बेटे को मारने का फैसला लिया. इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए, क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी.

हिरणकश्यप की योजना प्रहलाद को जिंदा जलाने की थी, लेकिन उसकी योजना सफल नहीं हो सकी, क्योंकि प्रहलाद पूरे समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया, पर होलिका जलकर राख हो गई. होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है. इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है. इसके चलते होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है.

ये कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है. भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ. वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे, इसलिए आज भी वृंदावन जैसी होली कहीं नहीं मनाई जाती.

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