भोपाल।कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए किए गए लॉकडाउन को डेढ़ महीने से ज्यादा समय हो गया है. इस दौरान सभी संस्थान बंद कर दिए गए है, जहां संक्रमण फैलने की आशंका थी. इसी कड़ी में तमाम धार्मिक स्थलों को भी बंद रखा गया है. जिसके चलते भगवान की पूजा-अर्चना का काम केवल पुजारी द्वारा किया जा रहा है. जबकि रोजाना आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर में आने की अनुमति नहीं है. जिससे मंदिरों का ऱखरखाव की व्यवस्था नहीं हो पा रही है. यहां तक की पुजारियों के सामने जीवन-यापन का संकट खड़ा हो गया है. अब सरकार ने शराब दुकानों को खोल दिया है. जिससे पुजारियों और श्रद्धालुओं की नाराजगी बढ़ गई है. उनका कहना है कि, जब सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर पुलिस की मौजूदगी मेंं शराब बेची जा सकती है, तो मंदिर क्यों नहीं खोले जा सकते हैं.
दान-दक्षिणा पर निर्भर है मंदिर की अर्थव्यवस्था
दरअसल, मंदिरों की अर्थव्यवस्था वहां आने वाले श्रद्धालुओं के चढ़ावे पर निर्भर होती है, जिसके माध्यम से ही मंदिर की व्यवस्था और पुजारियों के जीवन-यापन की व्यवस्था की जाती है. लेकिन लॉकडाउन के चलते श्रद्धालु मंदिर नहीं आ रहे हैं, जिससे मंदिरों की व्यवस्था गड़बड़ा गई है. वहीं पुजारियों के सामने पेट भरने का संकट खड़ा हो गया है. ऐसी स्थिति में मंदिर के संचालन के लिए समितियां जनता से आर्थिक सहयोग लेकर मंदिरों की व्यवस्था का संचालन कर रही हैं. लेकिन सरकार की तरफ से कई मदद नहीं की गई है.
मौलवी और इमामों की तरह दिया जाए मानदेय
पुजारी पंडित रामजीवन शर्मा बताते हैं कि, जब से कोरोना की महामारी फैली है. मंदिर सुबह-शाम केवल आरती के लिए खुलता है. लेकिन आता कोई नहीं है. दान दक्षिणा ना आने के कारण सभी मंदिरों में समस्याएं आ रही हैं. वैशाख का महीना था, जिसमें सारे त्योहार निकल गए. लेकिन लॉकडाउन के चलते इन त्योहारों में कोई आय नहीं हुई. वहीं मंदिर बंद होने से न यजमान आ रहे हैं और न ही कोई दर्शनार्थी. जिससे जीवन-यापन संकट का पैदा हो गया है. उन्होंने कहा कि, ना हमारे पास गरीबी रेखा का कार्ड है, ना ही कोई अन्य सुविधा है. ऐसे में किसी तरह अपना समय काट रहे हैं. पुजारियों की मांग है कि जिस तरह से मौलवी और इमामों के लिए मानदेय दिया जाता है, उसी तरह से पुजारियों को भी मानदेय दिया जाना चाहिए.
शासन नहीं कर रहा मदद