भोपाल। गिरवी बाबू, बहती हुई गंगा और गणतंत्र. यह शीर्षक (tital) है एएसपी मलय जैन (malay jain) की पुस्तक “हलक का दारोगा” (Halak ka daroga) के एक व्यंग्य का. जिसमें बाबू का बखान इस कदर किया गया है कि पूरी बाबू बिरादरी चिढ़ जाए. लिखा है कि रकम, जमीन गिरवी रखवाकर उधार देना, सूद उगाहना, उगाही-उगाही के खेल में बरतन भांडे भी बिकवा देना ही नहीं, कपड़े तक उतरवा लेने के लिए जाने जाते थे गिरवी बाबू. इसके पहले मलय जैन अपनी पुस्तक में पटवारी व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष कर चुके हैं.
8 साल पहले पटवारियों पर किया था कटाक्ष: 8 साल पहले लिखे अपने पहले व्यंग्य “ढाक के तीन पात” में उन्होंने लिखा था कि एक लाश जो दो थाना क्षेत्र की बाउंड्री पर लटकी सोच रही थी कि रस्सी टूटे और गिरुं तो मेरे कातिलों का पता चल सके. जिन दो थानों का जिक्र किया, उसमें एक का नाम गूगल गांव दिया था. इसमें एक करेक्टर का नाम पटवारी (Patwari) गोटीराम था और पटवारियों के लिए लिखा कि जिस जमीन को अच्छे बन्ने खां, फन्ने खां नहीं नाप सकते, उसे पटवारी चुटकियों में नाप देता है. वह चाहे तो दिशाओं को पलट सकता है. जमीन को आसमन और आसमान को जमीन, कुंए को खेत और खेत को कुआ, नाले को खेत और खेत को नाला, मैदान को पहाड़ और पहाड़ को मैदान बता सकता है. इस बात को लेकर तब विरोध भी हुआ था. इसे सोशल मीडिया पर अपलोड किया तो खासा वायरल हो गया, अब नया व्यंग्य संग्रह निशाने पर है.
पोस्टर में आत्ममुग्ध अफसर की इमेज:पोस्टर में एक महिला, पुलिस के डंडे पर टंगी हुई टोपी, कुर्सी, ऑक्टोपस, जमीन पर बैठा कुत्ता और उसकी पूछ सीधी करने के लिए बांधी गई लकड़ी दिखाई है. मलय जैन ने बताया कि पोस्टर में दी गई इमेज उसमें एक ऐसे आत्ममुग्ध अफसर की तरफ इशारा करता है, जो सिंहासन बत्तीसी पर बैठा है और उसके काम की तारीफ सिंहासन बत्तीसी की पुतलियां आकर करती हैं.