मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

Bhopal Gaurav Diwas: इन बाबूओं को भी शुक्रिया कहिए, जिनकी बदौलत बसा था भोपाल - भोपाल गौरव दिवस

मध्यप्रदेश की राजधानी में 1 जून को भोपाल गौरव दिवस मनाया जा रहा है. आज ही के दिन भोपाल शहर बसाया गया था. इस शहर को बनाने में न जाने कितने कर्मचारियों और लोगों का योगदान है. गौरव दिवस पर भोपाल के बसने की कहानी...

Etv Bharat
Etv Bharat

By

Published : Jun 1, 2023, 4:26 PM IST

भोपाल। एक शहर का बसना कोई एक दिन की कहानी नहीं होती. एक शहर का बसना एक घर के बसने जितना मुश्किल होता है. नाम किसी एक का आए बेशक...लेकिन तिनका तिनका बसते शहर को बसाने जाने कितने हजार हाथ जुटते हैं. भोपाल को बसाने में ये हजार हाथ उन कर्मचारियों के थे, जो अपना गांव शहर छोड़कर भोपाल आ बसे थे. इतिहास में इनके नाम कहीं दर्ज नहीं, पर भोपाल शहर का एक पूरा हिस्सा इन्हीं कर्मचारियों की बदौलत गुलजार हो पाया. इन्हीं कर्मचारियों के बूते पत्थर उगलता एक शहर हरे रंग में मुस्कुराया. एक नवम्बर 1956 के बाद ये हुआ कि रीवा, ग्वालियर, सतना, पन्ना, बैतुल, मुलताई, छिंदवाड़ा एमपी के हर हिस्से से आए बाशिंदों की मेहनत से नया भोपाल बन पाया. भोपाल गौरव दिवस पर जानिए कर्मचारियों के बसाए भोपाल को.

भोपाल के बसने की तस्वीर

कड़ाके की ठंड में हुआ एलान अब राजधानी भोपाल: एमपी के अलग-अलग जिलों से भोपाल आकर बसे कर्मचारियों को भी राजधानी बस जाने तक लंबी जद्दोजहद करनी पड़ी. वजह ये कि राजधानी ग्वालियर और इंदौर के बीच शिफ्ट होती रहती थी, लेकिन एक नवंबर 1956 को वो दिन भी आया, जब एमपी की राजधानी तय कर ली गई, तय हुआ कि राजधानी भोपाल ही रहेगी. इसके साथ ये भी निश्चित हो गया कि एमपी के अलग-अलग जिलों से भोपाल को राजधानी बनाने आए कर्मचारी अब यहीं बसेंगे. मध्यप्रदेश को बसाने पचास हजार कर्मचारी भोपाल आए थे. उस समय एमपी में बस जाने वालों में महाराष्ट्र के भी काफी लोग थे. नए भोपाल में कर्मचारी बस्तियां टीटीनगर में बसाई गईं. साऊथ और नार्थ टीटी नगर दो अलग-अलग हिस्सो में कर्मचारियों को बसाने कॉलोनियां बनाई गई. 1956 में भोपाल आकर बसे लोगों के सामने चुनौतियां कई थी. पूरा इलाका पथरीला था, इन्हीं लोगों ने यहां से पत्थर निकालकर वहां पेड़-पौधे लगाए. एक तरीके से भोपाल का सबसे बड़ा ऑक्सीजन जोन ही ये इलाका बना. वजह ये थी कि हर घर में आम अमरूद के साथ कनेर और फूलों के पेड़ पौधे थे.

भोपाल का हर जिम्मा कर्मचारियों ने उठाया:उस समय भोपाल के ही कर्मचारियों के कंधे पर पूरा शासन था. भोपाल का डेवलपमेंट प्लान बनाना और उस पर अमल सारा का कर्मचारियों के जिम्मे था. पेंशनर एसोसिएशन मध्यप्रदेश के वरिष्ठ प्रांतीय उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी बताते हैं कि सर्वे से लेकर मॉनिटरिंग कहां क्या उद्योग लगेगा. सारा काम कर्मचारी करते थे. सारी जिम्मेदारी कर्मचारियों पर थी. जोशी बताते हैं कि भोपाल से पहले 1956 में जबलपुर को राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन फिर भोपाल नवाब ने कहा कि मैं बिल्डिंग दूंगा राजधानी भोपाल ही बनाई जाए तो तय हुआ कि भोपाल ही राजधानी बनेगी. जबलपुर को फिर हाईकोर्ट देकर संतुष्ट किया गया.

जब भोपाल आए थे जवाहर लाल नेहरू

चपरासी की पगार साठ रुपए,नब्बे रुपए बाबू की सैलरी:कर्मचारियों की बदौलत ही भोपाल की इकोनॉमी को जमीन मिल पाई थी. बाजार बहुत बड़े नहीं थे. गणेश दत्त जोशी बताते हैं निम्न श्रेणी लिपिक का वेतन 90 रुपए था. जबकि चपरासी की पगार केवल साठ रुपए थी. फिर पे कमीशन आए. जिससे तनख्वाह बढ़कर 190 और 280 तक पहुंच गई.

ब्लैक एंड व्हाइट में भोपाल की पुरानी तस्वीर

कुछ खबरें यहां पढ़ें

ब्लैक एंड व्हाइट में भोपाल के लिंक रोड की तस्वीर

सबसे ज्यादा कर्मचारी रीवा से आए:भोपाल में कर्मचारी यूं हर इलाके से आए लेकिन सबसे ज्यादा कर्मचारियों की तादाद रीवा से थी. गणेश दत्त जोशी बताते हैं. रीवा के लोगों ने सबसे ज्यादा नौकरियां ली. उसके बाद जिन जिलों का नंबर आता है, उनमें ग्वालियर और जबलपुर से आकर लोग यहां बसे थे. एमपी के बनने से पहले 22 जिले थे. नागपुर राजधानी थे. एमपी बनने के बाद 43 जिले हो गए.

स्टाइल में फोटो निकलवाते लोग

कर्मचारियों ही हैं भोपाल की आर्थिक रीढ़:अगर भोपाल की इकोनॉमिक ग्रोथ की बात की जाए तो उसमे भी कर्मचारियों की बड़ी भूमिका रही. जब कर्मचारी बसे तभी तो यहां बाजार की जरुरत महसूस हुई. कर्मचारी दिन में नौकरी करते थे, शाम में जरुरत का सामान बेचते थे और ग्राहक भी कर्मचारी थे. नार्थ टीटी नगर साऊथ टीटी नगर में उसी दौरान बाजार बनकर तैयार हुए. धीरे-धीरे अलग इलाकों के साथ मार्केट विकसित हुए. जैसे बीएचईएल की पूरी बस्ती तो उस तरफ पिपलानी बाजार बना. बरखेड़ा मार्केट बना. न्यू मार्केट साऊथ नार्थ का महंगा था. लिहाजा सामान खरीदने लोग चौक बाजार जाया करते थे. जोशी कहते हैं आज जिन कर्मचारियों ने भोपाल को बसाया उनकी तादात दस लाख के करीब है. इनमें में नजी कंपनियों के कर्मचारी भी जोड़ रहा हूं. तो अब भी देखिए तो बाजार के खरीददारों से लेकर ईएमआई भरने वालो तक कर्मचारी ही तो भोपाल की अर्थव्यवस्था के सेंटर बने हुए हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details