मध्य प्रदेश

madhya pradesh

By

Published : Jul 12, 2021, 6:30 AM IST

ETV Bharat / state

Ashad Gupta Navratri 2021: जानिए! नील वर्ण वाली मां तारा की पौराणिक कथा और महत्व

गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां तारा की पूजा की पूजा होती है. इनका वर्ण नीला है इसलिए इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है. तो चलिए जानते हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां तारा की पूजा (Magha Gupta Navratri Maa Tara Ki Puja),मां तारा की पूजा का महत्व (Maa Tara Puja Importance), मां तारा की कथा (Maa Tara Ki Katha) और मां तारा के मंत्र (Maa Tara Ke Mantra)

maa tara devi
तारा देवी

भोपाल। गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां तारा देवी की पूजा होगी. यह गुप्त नवरात्रि की दूसरी शक्ति हैं. मां तारा का स्वरूप कुछ कुछ मां काली से ही मिलता है. इनकी साधना विशेष रूप से तंत्र शक्ति प्राप्ति के लिए की जाती है आद्य शक्ति हैं. महाविद्या हैं. महादेवी हैं. तारा देवी की पूजा आपका कार्य सिद्ध कर सकती है.

छात्राओं ने बनाई मां काली की खास पेंटिंग, महिला सशक्तिकरण का दे रही संदेश

करें सर्वस्व अर्पण

सबसे बड़ी पूजा मां की सेवा. समस्त ग्रहों की शांति भी मां की कृपा से हो जाती है. तारा देवी की कृपा पाने का सीधा और सरल उपाय है कि आप अपनी माता जी को कुछ भी भेंट दें. जो उनको अच्छा लगे, वह दें. वह खिलाएं. माता जी के लिए कोई भी उपहार आपकी किस्मत बदल सकता है. वैसे, चांदी की कोई चीज देना ज्यादा शुभ होगा.

धन की देवी हैं मां

रात्रि में, तारों की पूजा करना भी श्रेष्ठ रहेगा. लेकिन रात को दस बजे. तारा देवी धन की देवी हैं. आर्थिक उन्नति की प्रतीक हैं. इनकी पूजा से आर्थिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. तारा देवी को पूजनोपरांत लाल पुष्प चढ़ाएं और उसके बाद इस फूल को तिजोरी में लाल कपड़े में करके रख लें. श्रीवृद्धि होगी.

मां तारा की पूजा का महत्व (Maa Tara Puja Importance)

मां तारा को उग्रतारा भी कहा जाता है. मां अपना उग्र रूप रखकर अपने भक्तों के कष्टों को दूर करती हैं और अपने भक्तों को मोक्ष देती है. मां तारा की पूजा से काम, क्रोध, मोह और लोभ से मुक्ति मिलती है.

मां तारा की कथा (Goddess Tara Story) पौराणिक कथा

इसके अनुसार देवी तारा का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे पर हुआ था. स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, देवी तारा की उत्पत्ति , तट पर हुई. हयग्रीव नाम के दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने ही, नील वर्ण धारण किया था. महाकाल संहिता के अनुसार, चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथि में 'देवी तारा' प्रकट हुई थीं, इस कारण यह तिथि तारा-अष्टमी कहलाती हैं, चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि तारा-रात्रि कहलाती हैं. सबसे पहले स्वर्ग-लोक के रत्नद्वीप में वैदिक कल्पोक्त तथ्यों तथा वाक्यों को देवी काली के मुख से सुनकर, शिव जी अपनी पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुए. शिवजी ने मां पार्वती को बताया की आदि काल में भयंकर रावण का विनाश किया तब आपका वह स्वरूप तारा नाम से विख्यात हुआ.

उस समय आपका रूप बहुत विकराल था आपका यह रूप देखकर सभी देवता भयभीत हो गए थे. अपने इस विकराल रूप में आप नग्न अवस्था में खी इसलिए आपकी लज्जा के लिए ब्रह्मा जी न आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था. इसी कारण से आप लम्बोदरी नाम से विख्यात हुई थी. तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, भगवान राम केवल निमित्त मात्र ही थे, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया.

मां तारा के मंत्र (Goddess Tara Mantra)

ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट, ह्रीं त्री हुं फट, ह्रीं त्री हुं, ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट,ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट

(NOTE- मंत्रों का सटीक उच्चारण करें)

ABOUT THE AUTHOR

...view details