भोपाल। विश्व की सबसे भीषणतम घटना मानी जाने वाली भोपाल गैस त्रासदी की 36वीं बरसी है. इतने साल बाद भी गैस पीड़ित इसका दंश को झेल रहे हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी इस बीमारी के लक्षण देखे जा रहे हैं. लाख कोशिश के बाद भी गैस पीड़ित इस औद्योगिक त्रासदी को भुला नहीं पा रहे हैं. चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस जानलेवा त्रासदी की चपेट में आए करीब 90 फीसदी लोगों को आज भी सरकार आंशिक प्रभावित मानती है, जबकि उस काली रात ने अब तक 15000 से ज्यादा जिंदगियों को खत्म कर दिया.
90 फीसदी पीड़ितों को सरकार मानती है आंशिक प्रभावित
भोपाल में साल 1984 में हुई भयावह गैस त्रासदी के चलते आज भी लोग बीमारियों का दंश झेल रहे हैं. आज भी उन लोगों को अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते हैं. सरकार 90 फ़ीसदी लोगों को इस गैस की वजह से आंशिक प्रभावित मानती है. जबकि हकीकत कुछ और ही है. गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन के मुताबिक 70 प्रतिशत लोग एमआईसी गैस के चलते पूरी तरह से प्रभावित हुए हैं.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े पेश किए हैं, उसके मुताबिक ऐसे जानलेवा गैस से केवल 5000 लोगों की मौत हुई है. जबकि संगठनों का कहना है कि अब तक इस त्रासदी के चलते 15 हज़ार 300 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी दस्तावेज और अस्पताल के रिकॉर्ड के मुताबिक यह बात साफ हो जाती है कि 90 फ़ीसदी गैस पीड़ित आज भी पुरानी बीमारियों के चलते अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं.
जीवन भर रहता है एमआईसी गैस का असर
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सद्भावना ट्रस्ट की सदस्य रचना ढींगरा ने बताया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आंतरिक दस्तावेजों में भी यह बात साफ लिखी है कि अगर एक बार कोई भी व्यक्ति मिथाइल आइसोसाइनेट गैस की चपेट में आ जाए तो फिर जीवन भर इस गैस का असर शरीर पर दिखाई देता है. चाहे जितना भी इलाज हो जाए लेकिन एमआईसी की चपेट में आए व्यक्ति पर इस गैस का प्रभाव जीवन भर रहता है. उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों से राज्य सरकार से गैस पीड़ित संगठन यही आग्रह कर रहे हैं कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट में मरने वालों के सही आंकड़े पेश किए जाएं, जिससे डाउ केमिकल और यूनियन कार्बाइड से सही मुआवजा लिया जा सके.