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पढ़ाने का जुनून: गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का रोशनी फैला रही 'मानवता की पाठशाला' - भिंड में मानवता की पाठशाला

कहा जाता है कि शिक्षा से बड़ा कोई दान नहीं है. इसी को लेकर भिंड जिले के समाज सेवी मानवता की पाठशाला चला रहे हैं. जिसमें ऐसे बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है जो भीख मांगते हैं या कबाड़ बीनने का काम करते हैं. खास बात यह है कि यहां पढ़ाने वाले शिक्षक प्रोफेशनल नहीं हैं, कोई गृहणी है तो कोई एकाउंटेंट, लेकिन समय निकाल कर पढ़ाने आते हैं. (manavta ki pathshala in Bhind)

manavta ki pathshala in bhind
मानवता की पाठशाला

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Published : Mar 13, 2022, 9:39 AM IST

भिंड।किसी भी समाज को सभ्य तभी कहा जा सकता है जब सभ्यता को महत्व दिया जाए. समाज को आगे ले जाने और उसे बेहतर बनाने में लोगों की भागीदारी हो. इसके लिए शिक्षा सबसे अहम होती है और शिक्षा पर सबका अधिकार होता है, लेकिन हमारे देश में आज भी शिक्षा हर जगह नहीं पहुंच पाई है. करोड़ों ऐसे गरीब परिवार हैं जिनके बच्चे माली हालत या अन्य वजहों से पढ़ाई से वंचित हैं. यही हाल भिंड के पास रहने वाले झुग्गी बस्ती के लोगों के भी है. यहां रहने वाले बच्चे पारिवारिक कारणों के चलते स्कूल नहीं जा पाते हैं. ऐसे बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए भिंड में संचालित एक समाज सेवी मानवता समूह ने बीड़ा उठाया है. समूह द्वारा हर रविवार को मानवता की पाठशाला में बच्चों को पढ़ाया जाता है.

गरीब बच्चों की जिंदगी संवार रही मानवता की पाठशाला

बिल्डिंग नहींचबूतरे पर लगती है क्लास
रविवार का दिन भिंड बस स्टैंड स्थित झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों के लिए खुशी लेकर आता है. इन नन्हे मुन्नों के चेहरों पर अलग की खुशी देखने को मिलती है. शिक्षक कोई प्रोफेशनल नहीं हैं, यहां कोई अकॉउंटेन्ट है तो कोई शिक्षक, कोई हाउस वाइफ है, तो कोई छात्र. ये लोग उन गरीब बच्चों के हाथों में कलम थमा रहे हैं जो कभी भीख मांगते थे, कबाड़ बीनते थे. सभी अपनी दिनचर्या से समय निकाल कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. पाठशाला चलाने के लिए इनके पास कोई बिल्डिंग नहीं है, बस्ती के ही एक चबूतरे पर बच्चों की क्लास लगती है. यहां सिर्फ ABCD ही नहीं बल्कि बच्चों को साफ सफाई का पाठ भी पढ़ाया जाता है.

कोई शिक्षक तो कोई गृहणी, व्यस्तता के बावजूद निकालते हैं समय
रानी जैन गृहणी हैं लेकिन वक्त निकालकर बच्चों को पढ़ाने आती हैं, वह कहती हैं कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है. हमारे और दूसरे लोगों के बच्चे तो अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के माता-पिता आर्थिक स्थितियों के चलते स्कूल नहीं भेज पाते हैं. ऐसे में हम कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि बच्चों को यहां आकर शिक्षित कर सकें. गणित पढ़ाने वाले राजेश चौधरी वैसे तो खुद शासकीय कर्मचारी हैं, लेकिन इन बच्चों को पढ़ाने के लिए वे इतना समय निकाल लेते हैं कि उन्हें सभ्य बनाने में अपना योगदान दे सकें. राजेश की तरह ही उनकी पत्नी माधवी चौधरी भी शासकीय कर्मचारी हैं वे खुद शिक्षा विभाग में एकाउंटेंट हैं, लेकिन रविवार के दिन दो से तीन घंटे का समय निकालती हैं. वह कहती है कि हमने इस बस्ती के बच्चों को पढ़ाने के लिए बैच बनाये हैं उम्र के हिसाब से पढ़ाया जा रहा है.

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जिंदगी संवारने का काम
चार साल पहले मानवता की पाठशाला की शुरुआत हुई थी, इसकी नींव रखने वाले बबलू सिंधी कहते हैं कि हम अपने संजीवनी रक्तदान संगठन द्वारा लोगों का जीवन बचाने का काम कर रहे हैं. इसी को लेकर हमने मानवता की पाठशाला शुरू की थी. जिसके जरिये जिंदगी बचाने के साथ जिंदगियां संवारने का भी काम कर रहे हैं. इस सराहनीय पहल में पहले वह और उनके कुछ दोस्त ही ​शामिल थे लेकिन धीरे धीरे लोग जुड़ते गए. इन बच्चों में कुछ बच्चे स्कूल तो जाते हैं लेकिन उनकी पढ़ाई उस तरीके से नहीं हो पाती जैसी होना चाहिए. उन्हें कबाड़ बीनने या भीख मांगने जाना पड़ता है. इसलिए हमने इन बच्चों की पढ़ाई बेहतर तरीके से हो इसके लिए पाठशाला की शुरूआत की. किताबें, कॉपी, यूनिफॉर्म सहित अन्य जरूरत की चीजें उपलब्ध कराई जाती हैं. इन चीजों के खर्चे भी पाठशाला के सभी सदस्य आपसी सहयोग से करते हैं.

समाज को दे रहे संदेश
हमारे देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं जो शिक्षा से वंचित हैं. जिन बच्चों के हाथ में किताबें होना चाहिए उनके हाथों में भीख का कटोरा या कबाड़ रखने का बोरा है. गरीबी के चलते ऐसा काम करना उनकी मजबूरी है. शिक्षा के महत्व को समझते हुए बबलू सिंधी और उनके साथी यह मानवता की पाठशाला चला रहे हैं. वे उन तमाम लोगों को संदेश दे रहे हैं जो गरीब और जरूरतमंद बच्चों की मदद कर सकते हैं और उनके आने वाले भविष्य बदलने में सहायक बन सकते हैं.

(manavta ki pathshala in bhind) (Unique initiative of social workers in Bind)

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