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आपदा में भारत मां के सपूतों ने पेश की अद्भुत मिसाल, अगली पीढ़ी तक सेवा भाव पहुंचाने के लिए दस्तावेज आवश्यक- दत्तात्रेय होसबोले - भारत मां

सागर के केंद्रीय विश्वविद्यालय डॉ हरिसिंह गौर के स्वर्ण जयंती पर आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने उद्बोधन दिया, उन्होंने कहा कि भारत में जो संस्कार हैं, उसे हमें अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है, कोरोना काल में कई मजदूर अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़े थे, ऐसे मजदूरों का लोगों ने न जात देखा, न धर्म खुले दिल से उनकी मदद की खाना खिलाया, घर पहुंचाया, ऐसे ही संस्कार हमें अगली पीढ़ी को देना है.

Sarkaryavah of Rashtriya Swayamsevak Sangh Dattatreya Hosabole
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले

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Published : Aug 20, 2021, 9:35 PM IST

सागर। कोरोना काल में महाकौशल प्रांत की सेवा भारत के कार्यकर्ताओं ने जो सेवा कार्य किया है, उनका समावेश सेवा भागीरथी में किया गया है, इसका उद्देश्य किसी की वाहवाही करना नहीं, बल्कि उनके सेवा भाव को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है, यह विचार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने शुक्रवार को केंद्रीय विश्वविद्यालय डॉ हरिसिंह गौर के स्वर्ण जयंती सभागार में व्यक्त किए, वे यहां सेवा भागीरथी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उद्बोधन दे रहे थे.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले

'समाज के सभी वर्गों ने पेश किया सेवा का अद्भुत उदाहरण'

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि सेवा भागीरथी पुस्तक में कोरोना विभीषिका के दौरान सेवा भारती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने जो सेवा कार्य किया है, उनका संकलन है, संकटकाल में की गई सेवा के विभिन्न आयामों का विवरण है, पुस्तक का प्रकाशन किसी की प्रशंसा या वाहवाही के लिए नहीं बल्कि अगली पीढ़ी के लिए सेवा के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना है.

समाज के सभी वर्गों ने सेवा का उदाहरण किया पेश

विपदा के इस दौर में समाज के सभी वर्गों ने सेवा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया, इस दौरान स्वयं सेवक ने उन मरीजों पर भी ध्यान दिया, जो कोरोना से नहीं, बल्कि अन्य बीमारियों से भी पीड़ित थे, उनके भोजन उपचार और अन्य उपयोगी संसाधनों की समुचित व्यवस्था की.

कोरोना काल में न जात, न धर्म सभी ने किया जरुरतमंदों को सहयोग

कोरोना की पहली लहर के दौरान करीब 45 लाख प्रवासी मजदूर मुंबई, पुणे, अहमदाबाद में फंसे थे, आवागमन के सभी संसाधन बंद थे, तब लाखों मजदूर पैदल ही अपने गांव को निकल पड़े, जिसमें उनके बच्चे महिला और वृद्ध सभी शामिल थे, वे कोई नारा नहीं लगा रहे थे, ना सरकार ना उद्योगपति ना, पूंजीपतियों के खिलाफ, इस भीड़ ने कहीं भी उत्पात नहीं मचाया, ना कहीं कोई लूटपाट की, इनको देख समूचा समाज इनके सहयोग और सेवा के लिए खड़ा हो गया. इनके भोजन कपड़े जूते आदि की व्यवस्था की गई.

अगली पीढ़ी को संस्कार देना आवश्यक

किसी ने इनका धर्म संप्रदाय, जाति या भाषा नहीं पूछी, सेवा की ऐसी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी, यही सेवा भाव अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है, दत्तात्रेय होसबोलेे ने कहा कि अगली पीढ़ी को सेवा भाव और संस्कार देना आवश्यक है, यदि संस्कार ना हो, तो ज्ञान धन और शक्ति से भी समाज का कोई हित नहीं होगा.

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पुस्तक में सेवा कार्यों का सचित्र वर्णन

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि ज्ञानी रणजीत सिंह ने कहा कि सिख धर्म गुरुओं ने दीन दुखियों की सेवा को सबसे प्रमुख कार्य माना है, कोरोना काल में पूरे देश में सिक्ख समाज ने पीड़ितों के लिए भोजन, उपचार कपड़े दवाओं की व्यवस्था की, पुस्तक की संपादक दीप्ति प्यासी ने बताया कि कोरोना काल में स्वयं सेवकों द्वारा किए गए सेवा कार्यों का सचित्र वर्णन इस पुस्तक में किया गया है, कार्यक्रम में सेवा भारती महाकौशल प्रांत के अध्यक्ष डॉ बीके पांसे, संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री दीपक विसपुते मौजूद रहे.

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