भोपाल। केंद्र सरकार के आमबजट में सूखे की समस्या से जूझते बुंदेलखंड की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा नदी जोड़ो लिंक परियोजना के लिए राशि का प्रावधान किया जाना आगामी समय में बड़ा सियासी मुद्दा बन सकता है. देश में बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसकी पहचान सूखा, पलायन और गरीबी के कारण है.इन सभी समस्याओं का मूल कारण जलाभाव है. यहां की स्थिति बदलने के लिए तमाम दलों की सरकारों ने कदम बढ़ाए मगर हालात नहीं सुधरे.
Ken Betwa Link Project: सियासी फायदे के लिए पर्यावरण की बलि?
अब यूपी और 2023 में एमपी चुनाव में लाभ दिला सकता है मुद्दा
इस परियोजना से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों को लाभ होने वाला है. क्योंकि केन-बेतवा का नाता दोनों राज्यों से है, इसमें बड़ा हिस्सा बुंदेलखंड का है जो दोनों राज्यों में फैला है. बुंदेलखंड को पानी उपलब्ध कराने के लिए अमल में लाई जा रही यह परियोजना सियासी मुद्दा बन सकती है. क्योंकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हैं और लगभग डेढ़ साल बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव संभावित हैं. ऐसे में इस इलाके में पानी की उपलब्धता बड़ा बदलाव ला सकती है. क्योंकि यहां पानी के अभाव ने ही जीवन को ज्यादा मुश्किलों से भरा बना दिया है.
बुंदेलखंड के लिए लाइफलाइन साबित होगी केन बेतवा लिंक परियोजना- ईटीवी भारत से बोले मंत्री तुलसी सिलावट
इस परियोजना से खुशहाल होगा बुंदेलखंड
इस बार के बजट में साढ़े 44 हजार करोड़ से ज्यादा की केन-बेतवा लिंक परियोजना के क्रियान्वयन की शुरुआत हो गई है. इस परियोजना के लिए कैबिनेट ने 39317 करोड़ की राशि मंजूर की है. इसमें से 36290 करोड़ केंद्र सरकार अनुदान के तौर पर देगी, जबकि 3027 करोड़ का कर्ज देगी. केंद्र ने बजट में 1400 करोड़ की राशि मंजूर की है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि, पानी की कम से जूझते बुंदेलखंड क्षेत्र में अब खुशहाली होगी. इस परियोजना के चलते आठ लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे को सिंचाई की सुविधा मिलेगी.
सरकार और विपक्ष दोनों के लिए मुद्दा
बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष और खजुराहो के सांसद विष्णु दत्त शर्मा का कहना है,प्रधानमंत्री के बड़े विजन के साथ उन्होंने अटल जी के सपने को पूरा किया है. इस परियोजना से बुंदेलखंड की दशा-दिशा बदलेगी, जो सूखा बुंदेलखंड कहा जाता था, अब हरा-भरा और समृद्ध बुंदेलखंड बनेगा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी समय में यह परियोजना सियासी मुद्दा बन सकती है. बीजेपी जहां इस इलाके के हालात बदलने वाली परियोजना बताकर वोट हासिल कर सकती है, तो वहीं विरोधी दल पर्यावरण को नुकसान और परियोजना की कमियां गिनाकर बीजेपी को घेर सकते हैं. इस परियोजना के चलते पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को कुछ नुकसान होने के साथ बड़ी संख्या में पेड़ और बसाहट के भी प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है.उसके बावजूद अब तक इस परियोजना के विरोध में न तो पर्यावरण से जुडे संगठनों और दीगर लोगों ने आवाज उठाई है, साथ ही नदी जोड़ों का विरोध करने वाले भी चुप हैं.
इनपुट - आईएएनएस