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शादीशुदा महिला को मायके में रहने को मजबूर करना क्रूरता- हाईकोर्ट

एक मामले में फैमिली कोर्ट ने अपनी पत्नी को मायके में रहने के लिए मजबूर करने के लिए पति को भरण-पोषण के लिए 7 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. जिसपर पति ने खुद को छात्र बताते हुए 7 रुपए देने में असमर्थ बताया था. इस मामले में हाईकोर्ट में रिवीजन पिटीशन फाइल की गई थी.

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शादीशुदा महिला को मायके में रहने को मजबूर करना क्रूरता- हाईकोर्ट

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Published : Jun 30, 2021, 8:03 PM IST

जबलपुर।शादी शुदा महिला को उसके पिता के घर में रहने को मजबूर करना क्रूरता है. यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश हाईकोर्ट ने की है. जस्टिस जीएस अहलुवालिया के सिंगल बेंच में आए ऐसे ही एक मामले में बेंच ने कहा कि शादी के बाद एक विवाहित महिला को अपने पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता की श्रेणी में आता है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि वह बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही है. जीएस अहलूवालिया की एक मामले में दाखिल रिवीजन याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

फैमिली कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती

फैमिली कोर्ट ने एक पति को पिता के घर पर रहने को मजबूर करने के मामले में 2019 में दिए अपने सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत पत्नी को 3 हजार रुपए गुजारा भत्ता (भरण-पोषण) देने को कहा था. फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसपर हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा है कि, 'ऐसा दिखाई देता है कि फैमिली कोर्ट के 6 फरवरी 2019 के आदेश के तहत भरण-पोषण के रूप में 3,000 रुपये देने का निर्देश दिया था. अब यह निर्देश दिया जाता है कि भरण-पोषण के रूप में आवेदक (पति) द्वारा भुगतान की गई राशि को भरण-पोषण की राशि के बकाया में समायोजित कर दिया जाए।'' फैमिली कोर्ट ने पति को रिवीजन पिटीशन में निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को प्रति माह 7,000 रुपये का भुगतान करे. हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली इस याचिका को खारिज कर दिया है.

पत्नी ने मांगा था गुजारा भत्ता

इस मामले में पीड़ित महिला ने पति पर दहेज की मांग करने और ससुराल वालों द्वारा उसे प्रताड़ित करने और मारपीट करने का आरोप लगाया था. महिला ने यह भी कहा था कि उसे ससुराल से भी निकाल दिया गया है. फैमिली कोर्ट में मामला आने के 7 महीने पहले से पीड़ित महिला अपने पिता के घर आकर रहने लगी थी. पत्नी ने यह भी कहा कि इस दौरान ससुराल वालों और उसके पति ने उसे वापस लाने की कोई कोशिश नहीं की. वहीं दूसरी तरफ महिला के पति का कहना था कि उसकी पत्नी सिर्फ 4 दिन ही अपनी ससुराल में रही, इस दौरान दोनों के बीच कभी भी कोई शारीरिक संबंध नहीं बने. पति ने आरोप लगाते हुए कहा था कि उसकी पत्नी ने उसकी मर्दानगी पर सवाल उठाते हुए कभी भी इसकी अनुमति नहीं दी.

पति का तर्क वह स्टूडेंट है, 7 हजार रुपए देना संभव नहीं

इस मामले में पति की तरफ से फैमिली कोर्ट में तर्क देते हुए कहा गया था कि उसकी पत्नी बिना किसी कारण के अपने पिता के घर में रह रही है. जिसपर कोर्ट ने कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता है कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही थी और यह भी पाया कि वह खुद का खर्च उठाने में असमर्थ है क्योंकि वह कोई काम नहीं कर रही थी. फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पति द्वारा कहा गया कि भरण-पोषण के तौर पर हर महीने 7000 रुपये देना उसके लिए संभव नहीं है, क्योंकि वह एक छात्र है और एक दुकान पर पार्ट टाइम काम करता है.

कोर्ट में साबित नहीं हुए आरोप

फैमिली कोर्ट के तथ्यों और निर्देशों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि, ' इस मामले में न्यायालय का विचार है कि पीड़ित (महिला) और उसके माता-पिता के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए परंतु दूसरा पक्ष (पति) इनको कोर्ट में साबित करने में विफल रहा है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी (महिला) बिना किसी उचित कारण के अपने पति से अलग रह रही है.' कोर्ट ने यह भी कहा कि यह स्पष्ट है कि आवेदक (पति) ने (पत्नी) को छोड़ दिया है. यह एक गलत काम है और वह अपने स्वयं के गलत काम का लाभ नहीं उठा सकता है. कोर्ट ने साफ किया एक विवाहित महिला को अपने पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना भी एक क्रूरता है. कोर्ट यह नहीं मानता है कि पीड़ित महिला बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही है.'

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