भोपाल। जब मौसम में मस्ती घुलने लगे. हवा में रंगों की खुशबू आने लगे, तो समझो होली आने को है. चंग और भंग की लड़ी में रंग जुड़ जाए, तो समझो होली आने वाली है. होली और रंग एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हैं, जैसे बगिया में फूल. इस बार फिर होली आने को है. मुंह में पान की लाली और चेहरे पर इंद्रधनुषी रंगत छाने वाली है. ऐसे में मध्यप्रदेश की सरकारी संस्था ऐसा हर्बल गुलाल लेकर आई है. जो ना सिर्फ होली खेलने के लिए पूरी तरह सुरक्षित है, बल्कि ये आपकी स्किन को और चमकाएगा.
इस बार हर्बल रंग
होली पर रंग में सराबोर होने को किसका मन नहीं करता. प्रेम से भरे नारंगी, लाल, हरे, नीले, बैंगनी रंग सभी के मन से कटुता को धो देते हैं और सामुदायिक मेल-जोल को बढ़ाते हैं.लोगों का विश्वास है कि होली के चटक रंग ऊर्जा, जीवंतता और आनंद के सूचक हैं.
जमकर खेलो होली, अब डर काहे का भावनाओं और संवेदनाओं पर रंग का असर
ये संसार रंगभरा है. प्रकृति की तरह ही रंगों का प्रभाव हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर पड़ता है. जैसे क्रोध का लाल, आनंद और जीवंतता का पीला, प्रेम का गुलाबी, विस्तार के लिए नीला, शांति के लिए सफेद, त्याग के लिए केसरिया और ज्ञान के लिए जामुनी. हर मनुष्य रंगों का एक फव्वारा है.प्रकृति के जैसे हमारे मोनोभाव और भावनाओं के अनेक रंग होते हैं.
रंग में भंग ना पड़ जाए
तो होली के लिए सब तैयार हैं. पान-पिचकारी, गूंजियां और गुलाल भी आ गए हैं. होली पर रंग जरूरी है, लेकिन जरा संभलकर. कहीं ये रंग आपको नुकसान ना पहुंचा दें. सस्ते और मुनाफे के चक्कर में कुछ लोग आपकी सेहत से खिलवाड़ कर सकते हैं. होली के रंगों में आजकर केमिकल का भी जमकर इस्तेमाल होता है. ऐसे में हर किसी को डर होता है, कि कहीं ये रंग उसे नुकसान तो नहीं पहुंचाएंगे.
ये रंग बढ़ाएगा चेहरे की चमक
अब इसके लिए घबराने की जरूरत नहीं है. मध्यप्रदेश सरकार की संस्था लघु वनोपज संघ ने हर्बल गुलाल तैयार किया है. जो सुरक्षित तो है ही, साथ ही आपके चेहरे की चमक भी बढ़ाएगा. इतना ही नहीं बालों में रंगने से यह कंडीशनिंग का काम भी करेगा.
ऐसे बनता है हर्बल गुलाल
प्राकृतिक रूप से तैयार हो रहे गुलाल को बेलपत्र, पालक, हल्दी , चुकंदर, पलाश, सिंदूर जैसी शुद्ध चीजों से बनाया गया है. अगर होली की मस्ती में ये कलर मुंह में भी चला जाए, तो नुकसान नहीं करेगा. गुलाल का बेस अरारोट से तैयार किया गया है. एक क्विंटल गुलाल को बनाने में कम से कम एक हफ्ते का समय लगता है. कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार यह रंग-गुलाल केवल भोपाल में ही मिलेगा.
ऐसे बनता है हर्बल गुलाल
- पीले रंग का गुलाल बनाने के लिए हल्दी और गेंदे के फूल का इस्तेमाल किया जाता है.
- हरे रंग के गुलाल के लिए बेलपत्र और पालक का प्रयोग किया जाता है. इनकी पत्तियों को तोड़कर अलग किया जाता है .
- लाल रंग के गुलाल के लिए पलाश, सिंदूर और चुकंदर का प्रयोग होता है. इसमें पलाश के फूल को पानी में भिगोकर रखा जाता है. फिर इसमें चुकंदर के छोटे-छोटे टुकड़े मिलाए जाते हैं.
- तीन रंगों का गुलाल बनाने के लिए इन्हें अलग-अलग उबाला जाता है. फिर गाढ़े रंग में बदल जाने के बाद इसमें अरारोट मिलाते हैं. सूखने के बाद इसको मिक्सर में बारीक पीसा जाता है
- इसके बाद पैकिंग करके इसे बाजार में बेचने के लिए तैयार किया जाता है.
इस बार केवल तीन रंग का गुलाल
विंध्य हर्बल के संजीवनी प्रभारी केबी एस परिहार ने बताया कि कोरोना के कारण सिर्फ चार क्विंटल ही इको फ्रेंडली गुलाल बनाया गया है. इससे पहले हर साल सात रंगों में गुलाल तैयार किया जाता था. संजीवनी प्रभारी के मुताबिक हर्बल और इको फ्रेंडली रंग से स्किन का ग्लो बढ़ेगा. बालों में रंग लगने पर ये कंडीशनर का काम करेगा.
25 रुपए का एक पैकेट गुलाल
मध्यप्रदेश लघु वनोपज संघ के केंद्र में तैयार विंध्य हर्बल के इस गुलाल की बाजार में कीमत 500 रुपए प्रति क्विंटल रखी गई है. इसका एक छोटा पैकेट 25 रुपए में भी मिलेगा. इसे वनोपज संघ के बराखेड़ा पठानी केंद्र से और संजीवनी आउटलेट से खरीदा जा सकता है.
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केमिकल से बने रंग-गुलाल नुकसानदेह
डॉक्टरों के मुताबिक होली के लिए बाजार में मिलने वाले ज्यादातर रंग स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होते हैं. इनमें हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. इनके उपयोग से त्वचा खराब होने की आशंका बनी रहती है. इसके अलावा आंखों में रंग और गुलाल पड़ने से इन्फेक्शन का भी खतरा होता है. इनसे बालों को भी नुकसान होता है.