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त्याग, तपस्या और समर्पण की अनोखी मिशाल थे नानाजी, बदल दी भारत की तस्वीर - nanaji deshmukh Chitrakoot in satna

11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र में जन्मे नानाजी देशमुख को महानतम समाजसेवी और दीनदयाल शोध संस्थान के लिए 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और मरणोपरांत भूपेन हजारिका को भी भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

प्रणब दा, नानाजी देशमुख और भूपेन हाजारिका को मिला भारत रत्न

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Published : Aug 9, 2019, 1:35 AM IST

Updated : Aug 9, 2019, 9:19 AM IST

भोपाल। नानाजी देशमुख, भूपेन हजारिका और प्रणब मुखर्जी को देश के सबसे सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. नानाजी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया. अपने असाधारण कामों के लिए अपनी पहचान रखने वाले नानाजी सही मायनों में त्याग, तपस्या की मूरत थे.

त्याग, तपस्या और समर्पण की अनोखी मिशाल थे नानाजी

राजनीति के शिखर पर पहुंचकर एक झटके से सब छोड़ देना कठिन होता है. आजाद भारत में इसके कम उदाहरण हैं. चार दशक पहले ऐसा नानाजी देशमुख ऐसा ही साहस करके गांवों के समग्र विकास का मॉडल खड़ा करने के लिए निकल पड़े थे. कर्मयोगी भारत माता के सपूत चंडिकादास अमृतराव देशमुख यह कहते हुए देश की सरकार में मंत्री पद ठुकरा दिया था कि राजनीति में न रहते हुए भी देश की सेवा की जा सकती है.

नानाजी देशमुख ही थे जिनके संकल्प ने भारत के गांवों की तस्वीर को ही बदल कर रख दिया. नानाजी बाल गंगाधर तिलक की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर समाज सेवा के क्षेत्र में आए. इसके बाद संघ के सरसंघचालक डॉ. केवी हेडगेवार के संपर्क में आए और फिर संघ के विभिन्न प्रकल्पों के जरिए पूरा जीवन राष्ट्रसेवा में लगा दिया. राष्ट्रवादी विचारक और राजनेता नानाजी देशमुख को समाज के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है. उन्होंने यूपी और मध्यप्रदेश के लगभग 500 गांवों की सूरत बदलने का काम किया. वे कहते थे कि 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए.

नानाजी का मानना था कि जब भगवान राम अपने वनवास काल के प्रवास के दौरान चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकते. इसलिए नानाजी ने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया. नानाजी गांवों के विकास और लोगों के उत्थान के लिए चिंतित रहते थे. महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव हिंगोली में जन्मे नानाजी ने देश में शिक्षा और राष्ट्रवाद की ऐसी ज्वाला जलाई जो भी आज भी देश में जल रही है. उनके जीवन पर नजर दौड़ाए तो

भारत रत्न नानाजी देशमुख

  • 1934 में आरएसएस से जुड़े
  • 1950 में गोरखपुर के पक्कीबाग में सरस्सवती शिशु मंदिर की स्थापना की
  • 1968 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की
  • 1974 में जयप्रकाश नारायण आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई
  • 1977 में यूपी की बलरामपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता
  • 1978 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लिया
  • 1991 में देश के पहले ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की
  • देश के 500 से भी ज्यादा गांवों में स्वालंबन अभियान चलाया
  • 11 अक्टूबर 1997 में एम्स को अपनी देहदान की घोषणा की

देश के जिन क्षेत्रों में नानाजी की प्रेरणा से काम शुरु हुआ, उनसे जुड़े सैकड़ों लोगों के जीवन में बदलाव दिख रहा है. भारत रत्न नानाजी का देश के दिल देश के दिल मध्यप्रदेश से भी गहरा नाता रहा है. भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट वो जगह है जिसे नानाजी देशमुख ने अपनी कर्मभूमि का केंद्र बनाया. अपनी सतत साधना से नानाजी ने चित्रकूट में जिस ग्रामोदय विश्वविद्यालय की नीव रखी थी वो उनकी त्याग, तपस्या और दूरदर्शिता की सबसे बड़ी मिसाल है. 27 फरवरी 2010 को भारत मां के इस सपूत ने अपने शरीर से केवल आत्मा छोड़ी और अपना शरीर भी देश की सेवा के लिए दान कर सदा के लिए अमर हो गए.

Last Updated : Aug 9, 2019, 9:19 AM IST

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