भोपाल। 2-3 दिसम्बर साल 1984 को तालों की नगरी भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने कई कई परिवारों को रातों-रात उजाड़ दिया. तबाही का वो मंजर इतना खौफनाक था कि, 36 साल बाद आजभी लोगों की रुह कांप जाती है. उस रात हजारों की संख्या में लोगों की जान गई. ये एक ऐसी त्रासदी थी, जो इससे पहले दुनिया में कहीं नहीं हुई थी.
डॉक्टर्स भी नहीं कर पाए इलाज
2-3 दिसम्बर की रात जब यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव शुरू हुआ, तो चारों ओर भगदड़ मच गई. लोगों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि, वो क्या करें और जब परेशान होकर लोग अस्पतालों की तरफ दौड़े, तो वहां डॉक्टरों को ये नहीं पता था कि, मरीजों का इलाज कैसे करना है. काली मनहूस रात में धीरे- धीरे जब मौत ने तांडव मचाना शुरू किया तो, अस्पताल लाशों से पट गए. एक अनुमान के मुताबिक गैस त्रासदी के समय करीब 4 हज़ार लोगों की मौत हुई थी.
गैस पीड़ितों के लिए बनाया गया सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल
उस समय की स्थिति को तो संभाला नहीं जा सका, लेकिन गैस पीड़ितों पर गैस के हुए स्थाई नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार ने खासतौर पर गैस पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की, ताकि गैस पीड़ितों को सही इलाज मुहैया कराया जा सके. विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की गई आज की हालत यह है कि, गैस पीड़ितों को तो छोड़ो सामान्य मरीजों को भी यहां जाकर इलाज के लिए परेशान होना पड़ता है. अस्पताल के लगभग 5 विभागों के डॉक्टर पिछले कुछ महीनों में जॉब छोड़ चुके हैं.
गैस पीड़ितों को आज भी है इलाज का इंतजार
बीएमएचआरसी अस्पताल खासतौर पर गैस पीड़ितों के इलाज के लिए बनाया गया था, लेकिन अब आलम यह है कि वहां पर गैस पीड़ितों को केवल नाम का इलाज ही मिल पाता है. कई बार तो यह स्थिति होती है कि, मरीजों को भगा ही दिया जाता है. यदि उन्हें डॉक्टर से परामर्श मिल भी जाए, तो बाकी की दवाइयां उन्हें बाहर से ही खरीदनी पड़ती है. राजधानी में कई ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं है कि वह किसी निजी अस्पताल से इलाज का खर्चा उठा सके, इसलिए बीएमएचआरसी में मिल रहे थोड़े बहुत इलाज पर ही निर्भर हैं.