सोलन: आज के नौजवान आजादी के माहौल में खुलकर अपने विचार रखकर अपनी बात कहती हैं. सरकार की आलोचना करन से भी परहेज नहीं किया जाता. सोशल मीडिया पर सेंसर लग जाए. बोलने-लिखने-सुनने की आजादी पर सेंसर लग जाए तो क्या होगा. आज की पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती, लेकिन जिन लोगों ने 45 साल पहले आपातकाल का दौर देखा. वहीं, जानते हैं कि तब क्या हुआ होगा. आपातकाल के आज चार दशक पूरे हो गए. सब कुछ बदल गया पर नहीं बदली तो आपातकाल की यादें. ईटीवी भारत ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मोहिंद्र नाथ सोफत से की आपातकाल के उस दौर को लेकर बातचीत. उस समय की राजनीति कैसी थी और आज के दौर में राजनीति कैसी है.
● 25 और 26 जून की आधी रात को हुई थी आपातकाल की घोषणा
आज से 45 साल पहले 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की. आपातकाल मतलब सरकार को असीमित अधिकार, सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी. मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे. स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था.इसका आधार वो प्रावधान था जो धारा 352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देता. आपातकाल का यह दौर 21 मार्च 1977 तक यानी पूरे 21 महीने तक चला.
यह सवाल हर देशवासी जानना चाहता है कि 45 साल पहले देश में ऐसा क्या हुआ, कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लगानी पड़ा. मोहिंद्र नाथ सोफत ने बताया कि आपातकाल लगाने के पीछे कई कारण थे. एक मुख्य वजह जो दिखती है वह 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था, लेकिन चुनाव परिणाम आने के 4 साल बाद राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम की चुनौती दी.
राज नारायण सिंह की दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया. सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया. 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उनपर 6 साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया. उनके मुकाबले हारे और इंदिरा गांधी के चिर प्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था.
"सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"
इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा तत्कालीन सरकार की नीतियों की वजह से महंगाई दर 20 गुना बढ़ गई थी. गुजरात और बिहार में शुरू हुए छात्र आंदोलन से उद्वेलित जनता सड़कों पर उतर गई थी. जिस रात को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की. उस रात से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में एक विशाल रैली हुई. जिसने इंदिरा सरकार को हिला कर रख दिया था. वो तारीख थी 25 जून 1975 थी.
इस रैली में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ललकारा और उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया. इस रैली में विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता थे. यहीं पर राष्ट्रकवि दिनकर की मशहूर लाइनें "सिहासन खाली करो कि जनता आती है" की गूंज नारा बन गई. 29 जून को कांग्रेस विरोधी ताकतों ने पूरे देश में हड़ताल का आह्वान किया था. इन्हीं सब वजहों से इंदिरा गांधी ने धारा-352 के तहत देश में आंतरिक आपातकाल लगाने का फैसला किया. 29 जून को कांग्रेस विरोधी ताकतों ने हड़ताल का आह्वान किया था. जिससे इंदिरा गांधी की कुर्सी को खतरा था, इसलिए 25 जून को इमरजेंसी लगा दी गई.
● आपातकाल के दौर में क्या-क्या हुआ
मोहिंद्र नाथ सोफत ने बताया कि आपातकाल मतलब सरकार को असीमित अधिकार. आपातकाल वह दौर था जो सत्ता की ओर से आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की गई थी. इसका आधार वह प्रावधान था जो धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देती है. आपात काल का मतलब था कि इंदिरा गांधी जब तक चाहे सत्ता में रह सकती थीं लोकसभा विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी. मीडिया और अखबार आजाद सरकार के खिलाफ कुछ नहीं लिख सकते थे. सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी. सारे विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. सरकार का विरोध करने पर दमनकारी कानून, मीसा और डीआईआर के तहत देश में करीब 1 लाख ग्यारह हजार लोगों को जेल में ठूंस दिया गया था.