शिमला: हिमाचल में आज से निजी बसों के पहिये थम गए हैं. न्यूनतम किराया बढ़ाने की मांग और घाटे का हवाला देकर निजी बस ऑपरेटर्स ने आज से निजी बसें ना चलाने का फैसला लिया है. गौरतलब है कि 1 जून को अनलॉक-1 के साथ प्रदेश में HRTC और निजी बसें चलने लगी थी लेकिन यात्रियों की कमी के कारण निजी बस ऑपरेटर्स को घाटा हो रहा था. जिसके बाद निजी बस ऑपरेटर्स ने ये फैसला लिया है.
निजी बस ऑपरेटर संघ का फैसला
हिमाचल प्रदेश निजी बस ऑपरेटर संघ की एक बैठक वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से ही प्रदेश अध्यक्ष राजेश पराशर की अध्यक्षता में संपन्न हुई. बैठक में प्रदेश पदाधिकारियों ने भाग लिया और सर्वसम्मति से यह तय किया कि जब तक सरकार निजी बस ऑपरेटरों की मांगे पूरी नहीं करती और निजी बस ऑपरेटरों की समस्याओं पर गौर नहीं करती तब तक प्रदेश में निजी बसें नहीं चलेंगी.
निजी बस ऑपरेटर्स की क्या है मांग ?
निजी बस ऑपरेटर्स के मुताबिक अगर सामाजिक दूरी की गाइडलाइन को पूरा करना है तो निजी बस ऑपरेटर उसके लिए तैयार है, जिसके तहत 40 फीसदी सीटें खाली छोड़नी होंगी. यानि बस में अधिकतम सिर्फ 60 फीसदी सीटों पर ही सवारियां बैठेंगी. निजी बस ऑपरेटर्स ये फॉर्मूला अपनाने को तैयार तो हैं लेकिन इससे उन्हें घाटा हो रहा है. ऐसे में उनकी मांग है कि जो 40% सीटें खाली बचती हैं उसका किराया सब्सिडी के रूप में सरकार वहन करें.
इसके अलावा निजी बस ऑपरेटर्स ने न्यूनतम बस किराये में बढ़ोतरी की मांग करते हुए इस 10 रुपये करनी की मांग की है. जिसके तहत 5 किलोमीटर तक 10 रुपये, 5 से 10 किलोमीटर तक 20 रुपये और 10 से 15 किलोमीटर तक 30 रुपये किराया निर्धारित किया जाए. सामान्य किराये में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि की मांग भी की गई है.
क्या कहते हैं निजी बस ऑपरेटर्स ?
हिमाचल प्रदेश में निजी बस ऑपरेटर संघ के प्रदेश महासचिव रमेश कमल ने कहा है कि सभी जिला की यूनियन के पदाधिकारियों ने एकमत से यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि हिमाचल प्रदेश में लॉकडाउन और वैश्विक महामारी कोरोना के चलते सवारियां नहीं मिल रही है. इसके चलते यह तय किया जाता है कि जब तक सरकार की ओर से निजी बस ऑपरेटर के हित में कोई सकारात्मक फैसला नहीं किया जाता है तब तक निजी ऑपरेटर अपनी बसें नहीं चलाएंगे.
हिमाचल प्रदेश निजी बस ऑपरेटर संघ के प्रधान राजेश पराशर ने कहा कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में लॉकडाउन से राहत तो मिल गई है लेकिन इसका असर बस यात्रियों पर पड़ा है और बसें खाली चलानी पड़ रही हैं. इसका असर सिर्फ निजी बसों पर नहीं बल्कि HRTC की बसों पर भी पड़ा है यानि निजी बस ऑपरेटर्स के साथ HRTC को भी घाटा हो रहा है. सरकार को चाहिए कि वह निजी बस ऑपरेटरों साथ सकारात्मक निर्णय ले और कोई न कोई रास्ता निकाले.
निजी बसों पर ब्रेक किसकी मुसीबत ?
हिमाचल में 3000 से ज्यादा निजी बसे हैं जिनके पहिये लॉकडाउन के दौरान थमे रहे. अनलॉक-1 के दौरान सरकार ने बसें चलाने की छूट तो दी लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग की पालना के साथ. कोरोना संक्रमण के डर से पहले ही लोग बसों में यात्रा करने से बच रहे हैं ऐसे में निजी बस ऑपरेटर्स को घाटा हो रहा है जिसे देखते हुए निजी बस ऑपरेटर्स ने आगामी फैसले तक बसें ना चलाने का फैसला लिया है. आम दिनों के लिहाज से इतनी बसों पर ब्रेक लगने से लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में लोग बसों में सफर करने से बच रहे हैं. HRTC की बसें भी 1 जून से सड़कों पर हैं और उनमें भी सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्मूला लागू है. घाटा HRTC को भी हो रहा है क्योंकि ज्यादातर बसों को सवारियां नहीं मिल रही औऱ जिन्हें मिल भी रही हैं वो भी सिर्फ 60 फीसदी सवारियों के साथ चल रही हैं. ऐसे में ये फैसला परेशानी किसकी बढ़ाएगा ये सोचने वाली बात है.