शिमलाः पूरे देश मे डिजिटल क्रांति के इस युग में भी हिमाचल का एक क्षेत्र ऐसा है जहां लोग पाषाण युग की तरह मूलभूत सुविधाओं के बगैर जीने को मजबूर हैं. देश में लोकसभा चुनाव के शोर के बीच जनजातीय क्षेत्र पांगी के 30 हजार लोगों ने इस बार लोकसभाचुनाव बहिष्कार करने का फैसला लिया है.
चंबा के पांगी वासियों के हालत की बात की जाए तो यहां लोग अपनों का हाल जानने के लिए आज भी चिट्ठी का सहारा ले रहे हैं. पांगी के लोग अपनों के हाल-चाल जानने के लिए खत आने का इंतजार करते हैं. ये इलाका अभी तक भी मोबाइल फोन और इंटरनेट से कोसों दूर है और यहां बसने वाली 60 फीसदी आबादी ने मोबाईल फोन का इस्तेमाल तो दूर, मोबाइल फोन तक नहीं देखा है. सरकारें जिस डिजिटल इंडिया का सपना लोगों को दिखा रही हैं. वहीं, पांग केलोग अभी भीमोबाईल नेटवर्क की राह देख रहे हैं.
पांगी का बर्फबारी के चलते 6 महीनेके लिए पूरी दुनिया से कट जाता है. लोग इन छह महीनों में जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते हैं. पांगी उपमंडल के मात्र 20 फीसदी गांव ऐसे हैं, जहां बीएसएनएल का नेटवर्क मिलने से लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर पा रहे हैं, लेकिन बाकी आबादी अभी भी चिट्ठीलिख करएक-दूसरे का कुशलक्षेम या फिर अपने सरकारी काम पूरे करते हैं.बर्फबारी के छह महीनों में पांगी घाटी में जीवन हर रोज एक जंग है. हालात येहैं कि कम संसाधनों में भी येलोग आज भी इस घाटी से पलायन ना कर इस उम्मीद पर टिके हैं कि सरकार इनकी दशा को देख कर यहां सुविधाएं मुहैया करवाएगी.
हर बार देश की सरकारें यहां के लोगों को ठगती आई हैं. इस बार पांगी के 16 पंचायतों के प्रजामण्डलों ने एकमत होकर फैसला किया है कि जब तक सरकारें इनकी दशा को सुधारने के लिए काम नहीं करती तब तक यहां के 30 हजारलोग किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेंगे.पांगी क्षेत्र के लिए संघर्षरत पांगी सुरंग समिति के संयोजक हरीश शर्मा का कहना है कि प्रस्तावित चैड़ी धार सुरंग समेत किलाड़-जोत-द्रमन सड़क का निर्माण होने से पांगी घाटी के हजारों लोगों को राहत मिलेगी.
हरीश शर्मा का कहना है कि हर बार चुनाव के समय इस सुरंग और सड़क निर्माण के वादे राजनीतिक पार्टियां करती हैं और इसी के आधार पर वोट पर लेती हैं, लेकिन इस बार यह संभव नहीं होगा. पांगी के प्रजामण्डलों ने ये साफ कर दिया है कि जब तक सुरंग का निर्माण नहीं होता है तब तक यहां के लोग मतदान नहीं करेंगे और जो नेता इस सुरंग का निर्माण करवाएगा उसी को अपना समर्थन घाटी के लोग देंगे.
हरीश शर्मा ने पांगी के हालातों के बारे में बताया कि घाटी के लोग जो संपन्न परिवारों से हैं वो घाटी से पलायन कर चुके हैं, लेकिन 90 फीसदी लोग अभी भी घाटी में रहकर अपनाजीवन जी रहे हैं. यहां आज के दौर में भी सवास्थ्य सेवाएं ,बेहतर शिक्षा, बिजली, दूरसंचार की सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं. नवंबर से अप्रैल तक बर्फबारी के चलते ये घाटी विश्वभर से कट जाती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति बीमार होता है या कोई महिला गर्भवती है उसे बेहतर इलाज के लिए हवाई सेवा द्वारा ही घाटी से बाहर ले जा पाना संभव हो पाता है औरहवाई सेवामौसम पर निर्भर करतीहै.
पांगी से ही संबंध रखने वाली छात्राओं दीपा और वर्षा शर्मा ने पांगी में छात्रों की समस्याओं में बारे में बताया कि शिक्षा के लिए स्कूल तो हैं, लेकिन इन हालातों में शिक्षक अपनी सेवाएं देने के लिए यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं. एकमात्र कॉलेज यहां बच्चों की उच्चशिक्षा के लिए सरकार ने खोला है, लेकिन यहां भी केवल आटर्स के छात्रों को पढ़ना पढ़ रहा है, क्योंकि अन्य स्ट्रीम्स के शिक्षक इस कॉलेज में उपलब्ध नहीं हैं. सांइस कॉमर्स की पढ़ाई के लिए छात्रों को हजारों रुपयेखर्च कर चंबा या अन्य जगह जाना पड़ता है.
लोगों की मांग है कि सरकार पांगी को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में काम करें, ताकि यहां के लोग भी डिजिटल इंडिया और प्रगतिशील इंडिया का खुद को हिस्सा मान सकें और कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन सही तरीके से बसर कर सकें. क्षेत्रवासियों का कहना है कि जब तक इनके लिए सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जाती, तब तक यहां के लोग किसी भी चुनावमें मतदान नहीं करेंगे.
आज भी पांगी में प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च
पांगी घाटी में आज भी प्रजामण्डलों का फैसला ही सर्वोच्च है. पांगी घाटी में प्राचीन काल से प्रजामण्डलों को देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है. यहां 43 प्रजामंडल हैं और प्रजामंडल के सुनाए गए निर्णय को जनजातीय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति दरकिनार नहीं करता. यदि कोई ऐसा करता है उसे समाज से निष्कासित करने का दंड सुनाया जाता है. यही वजह है किइस बार लोकसभाचुनावमें शून्य मतदान करने का फैसला प्रजामंडल के समर्थन से घाटी के लोगों ने किया है.