शिमला: कर्ज के बोझ तले दबा हिमाचल नए साल में 500 करोड़ रुपये का और लोन लेगा. हिमाचल प्रदेश पर 53 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. बताया जा रहा है कि जयराम सरकार हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व दिवस 25 जनवरी को कर्मचारियों से जुड़ी कोई वित्तीय घोषणा कर सकती है.
इसके लिए जनवरी के पहले ही सप्ताह में 500 करोड़ रुपये का लोन लिया जा रहा है. शुक्रवार देर शाम कर्ज से संबंधित अधिसूचना जारी की गई. अधिसूचना के अनुसार, सात जनवरी को प्रदेश सरकार के खजाने में लोन के 500 करोड़ रुपये आ जाएंगे.
प्रदेश सरकार के मुताबिक 500 करोड़ रुपये का ये लोन सरकार की कर्ज लेने की तय सीमा के भीतर ही है. प्रदेश सरकार ने इस कर्ज के लिए केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से अनुमति ली है. प्रदेश सरकार एक वित्तीय वर्ष में एक तय सीमा में कर्ज ले सकती है.
राज्य सरकार के वित्त विभाग के अनुसार, तय सीमा की राशि में अभी लोन की एक और किस्त सरकार ले सकती है. संभावना जताई जा रही है कि नए साल की पहली तिमाही में लोन की ये किस्त 31 मार्च से पहले ली जाएगी.सरकार का कहना है कि सामान्य विकास कार्यों के लिए ये लोन लिया जा रहा है. इस बार लिए जा रहे 500 करोड़ रुपये के लोन को सरकार को जनवरी 2030 तक चुकाना है. यानी दस साल में इस लोन का भुगतान करना है.
हालांकि हिमाचल सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने की राह पर है, लेकिन वित्तीय वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा 3870 करोड़ था. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश के राजकोषीय घाटे में 2017-18 में 31 फीसदी का इजाफा हुआ.
प्रदेश सरकार ने बीते साल यानी साल 2019 में अक्टूबर माह में दो अलग-अलग मदों में 400 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था, साथ ही इससे पहले बीते साल जुलाई माह में 750 करोड़ और अगस्त माह में 250 करोड़ के लोन सरकार ने लिए थे. प्रदेश के खजाने पर सर्वाधिक दबाव सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन का है. 100 रुपये में से करीब 33 रुपये इन दो मदों पर खर्च हो रहे हैं साथ ही ब्याज की अदायगी पर सरकार प्रति 100 रुपये में से सवा दस रुपए खर्च कर रही है.
आमदन का आधार अगर 100 रुपये है तो इसमें से सात रुपए से अधिक की रकम सरकार कर्ज के भुगतान पर खर्च कर रही है. विकास कार्यों के लिए सरकार के पास 100 रुपये में से सिर्फ 36 रुपये ही बच रहे हैं. यही कारण है कि विकास के लिए प्रदेश को केंद्रीय योजनाओं अथवा बाह्य वित्त पोषित योजनाओं पर निर्भर रहना पड़ रहा है.