शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़े कानून के अमल पर रोक लगा दी है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने इस बारे में अंतरिम आदेश पारित किया है. साथ ही खंडपीठ ने राज्य सरकार के जनजातीय विकास विभाग की तरफ से पहली जनवरी को जारी पत्र पर भी रोक लगा दी है. इस पत्र में जनजातीय विकास विभाग ने डीसी सिरमौर को गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय को एसटी प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश दिए थे. मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि जब केंद्र सरकार पहले ही इस मुद्दे को तीन बार नकार चुकी थी तो इसमें कानूनी तौर पर ऐसा क्या रह गया था कि अब सिरमौर जिले के हाटी समुदाय को एसटी दर्जा जेने का कानून बनाना पड़ा.
वर्ष 1995, 2006 व 2017 में गिरिपार या ट्रांसगिरि इलाके के हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा देने के लिए ये मामला केंद्र सरकार के समक्ष भेजा गया था. तब तत्कालीन केंद्र सरकारों ने हर बार इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था. इन कारणों में पहला कारण उक्त क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया. दूसरा कारण ये था कि हाटी शब्द सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है. फिर तीसरा कारण ये था कि हाटी किसी जातीय समूह को इंगित या निर्दिष्ट नहीं करते हैं. ऐसे में हाईकोर्ट ने कानूनी तौर पर इस इलाके के लोगों को जनजातीय दर्जा दिया जाना प्रथम दृष्टया वाजिब नहीं पाया.
उल्लेखनीय है कि इस मामले में दाखिल याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही उक्त क्षेत्र की जनजातीय घोषित कर दिया गया. अलग-अलग याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि वे पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. प्रदेश में कोई भी हाटी नाम से जनजाति नहीं है और आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दिया गया. याचिकाओं में कहा गया कि यह कानूनी तौर पर गलत है. किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने के मानदंड को पूरा नहीं करता हो.