शिमला: देश की एप्पल बास्केट हिमाचल में इस साल सेब सीजन कई मायनों में उल्लेखनीय रहा है. हालांकि सेब उत्पादन में पिछले सीजन के मुकाबले गिरावट रही, लेकिन दाम अच्छे मिलने के कारण बागवान मालामाल हो गए. प्रदेश में इस सीजन में कुल 1.80 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ. इसके अलावा बागवानों से मंडी मध्यस्थता योजना यानी एमआईएस के तहत 52845 मीट्रिक टन सेब खरीदा गया.
मौसम की मार के कारण इस बार सेब उत्पादन प्रभावित हुआ. पिछले साल यानी वर्ष 2022 में हिमाचल में कुल 3.36 करोड़ पेटी सेब पैदा हुआ था. यानी इस साल पहले के मुकाबले सेब सीजन प्रोडक्शन के मामले में आधा ही रहा है. पिछले साल एमआईएस के तहत 72 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदा गया था. इस बार सेब सीजन बेशक उत्पादन के मामले में अच्छा नहीं रहा, लेकिन बागवानों को दाम अच्छे मिले. इस दफा किलो के हिसाब से भी सेब खरीदा गया.
इस फैसले से भी बागवानों को लाभ हुआ. इस साल सरकार की सख्ती से सेब की एक पेटी 24 किलो की भरी गई. वहीं, पहले बागवान एक पेटी में 35 किलो तक सेब भर देते थे. इसके बाद भी सीजन 1.80 करोड़ पेटी तक सिमट गया. बागवानी विभाग ने आधिकारिक रूप से 24 नवंबर को सेब सीजन की समाप्ति मान ली. इस बार किन्नौर जिला में करीब 32 लाख पेटी सेब हुआ. हिमाचल में सेब को स्टोर करने के लिए सरकारी स्तर पर चार सीए स्टोर हैं. इसके अलावा निजी सेक्टर में 28 सीए स्टोर हैं. सरकारी सीए स्टोर 2680 मीट्रिक टन सेब को स्टोर कर सकता है.
उत्पादन कम, दाम अधिक:इस बार बागवानों को न्यूनतम एक हजार रुपए से 3600 रुपए प्रति पेटी सेब का दाम मिला. चूंकि पीक ऑवर्स में फसल कम थी और मांग ज्यादा तो इस कारण दाम अच्छे मिले. अच्छे दाम मिलने से बागवानों को कम उत्पादन का घाटा नहीं हुआ. कुल मिलाकर ये सीजन 3500 करोड़ रुपए से अधिक ही रहा. प्रगतिशील युवा बागवान पंकज डोगरा के अनुसार इस साल अमूमन बागवानों को मुंहमांगा दाम मिला है. बागवानी के क्षेत्र में पहचान बनाने वाले संजीव चौहान के अनुसार मौसम की मार के कारण उत्पादन प्रभावित रहा, लेकिन दाम अच्छे मिल गए.
उत्पादन कम रहने का कारण मौसम प्रतिकूल:मौसम प्रतिकूल होने के कारण इस बार सेब की पैदावार कम रही. कुल मिलाकर पिछले साल के मुकाबले आधा उत्पादन हुआ. इस बार अच्छी बर्फबारी नहीं हो पाई. सेब की चिलिंग ऑवर्स की रिक्वायरमेंट पूरी न होने से उत्पादन प्रभावित होता है. दिसंबर में बर्फ गिर जाए तो चिलिंग आवर्स पूरे होने के आसार बढ़ जाते हैं. फिर मार्च महीने में फूल आने के समय बारिश, ओले व बर्फबारी हो गई. इस कारण फूल झड़ गए. हद तो उस समय हुई जब अप्रैल व मई महीने में बार बार ओले गिरने लगे. इससे उत्पादन में गिरावट आना लाजमी था. तापमान में गिरावट से सेब का आकार अच्छा नहीं रहा.
हिमाचल में सेब उत्पादन का रिकॉर्ड साल दर साल उत्पादन:हिमाचल में वर्ष 2010 में सबसे अधिक 4.46 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था. फिर 2011 में ये आंकड़ा 1.38 करोड़ पेटी रहा. इसी तरह वर्ष 2012 में 1.84 करोड़, वर्ष 2013 में 3.69 करोड़, वर्ष 2014 में 2.80 करोड़, वर्ष 2015 में 3.88 करोड़, वर्ष 2016 में 2.40 करोड़, वर्ष 2017 में 2.08 करोड़, वर्ष 2018 में 1.65 करोड़, वर्ष 2019 में 3.24 करोड़, वर्ष 2020 में 2.40 करोड़, वर्ष 2021 में 3.05 करोड़ पेटी व वर्ष 2022 में 3.36 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ. वैसे सेब उत्पादन में ऑफ ईयर व ऑन ईयर का कॉन्सेप्ट होता है. जिस साल सेब की पैदावार अच्छी होती है, उसे ऑन इयर कहते हैं. एक बार ऑन इयर आने के बाद अगला सीजन ऑफ ईयर होता है. यानी अगले सीजन में सेब पहले के मुकाबले कम होता है.
फल उत्पादन में 85 फीसदी सेब: मौजूदा समय में राज्य में कुल फलों के उत्पादन का 85 प्रतिशत हिस्सा सेब के रूप में है. आंकड़ों पर गौर करें तो 2021-22 में हिमाचल के कुल फल क्षेत्र का 48.8 प्रतिशत सेब उत्पादन के रूप में है. प्रदेश के कुल फल उत्पादन का ये 81 फीसदी बनता है. देश की आजादी के बाद वर्ष 1950-51 में हिमाचल में सेब उत्पादन का क्षेत्रफल 400 हेक्टेयर था. बाद में वर्ष 1960-61 में बढ़कर ये 3025 हेक्टेयर और 2021-22 में बढ़कर 1,15,016 हेक्टेयर हो गया. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2007-08 से 2021-22 के बीच सेब उत्पादन के क्षेत्र में 21.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई.
(स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट)
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