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पूर्व राज्यपाल के फार्म हाउस में किसान सीखेंगे प्राकृतिक खेती, 35 किसानों की टीम रवाना

35 किसानों की एक टीम मंगलवार को इंटर स्टेट एक्सपोजर विजिट पर कुरूक्षेत्र के लिए रवाना हुई. यहां किसानों को हिमाचल के पूर्व राज्यपाल आचार्य देवव्रत के फार्म हाउस में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को नजदीक से जानने का मौका मिलेगा.

Farmers will learn natural farming, किसान सीखेंगे सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
5 किसानों की टीम रवाना कुरूक्षेत्र रवाना

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Published : Feb 18, 2020, 8:28 PM IST

करसोग:प्रदेश सरकार की महत्वकांक्षी योजना सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को गांव-गांव तक पहुंचाने के किए करसोग ब्लॉक से 35 किसानों की एक टीम मंगलवार को इंटर स्टेट एक्सपोजर विजिट पर कुरूक्षेत्र के लिए रवाना हुई. यहां किसानों को हिमाचल के पूर्व राज्यपाल आचार्य देवव्रत के फार्म हाउस में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को नजदीक से जानने का मौका मिलेगा.

कुरुक्षेत्र में आचार्य देवव्रत के 200 बीघा भूमि में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जा रही है. एक्सपोजर विजिट में केवल उन्हीं किसानों को कुरुक्षेत्र जाने का मौका दिया गया है, जो किसान इस तकनीक से जुड़े हैं और सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. विजिट से वापिस लौटने के बाद ये किसान अपने अपने क्षेत्रों में इस तकनीक को प्रमोट करेंगे. वर्तमान में करसोग में किसान करीब 2 हजार बीघा भूमि में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं.

कुरूक्षेत्र रवाना होने से पहले किसानों का जत्था.

उपमंडल में जिस स्तर पर इस तकनीक पर कार्य हो रहा है और किसान एक दूसरे को देख कर तकनीक को अपना रहे हैं. जल्द ही 4 हजार बीघा भूमि पर इस खेती करने के लक्ष्य भी पीछे छूट जाएगा. करसोग कृषि विभाग के अधिकारी हर पंचायत में जाकर किसानों को इस बारे में ट्रेंनिग दे रहे हैं. इसके अतिरिक्त किसानों इस तकनीक को अपनाने के लिए मुफ्त में बीज भी बांटे जा रहे हैं.

प्राकृतिक खेती ने याद दिलाया देसी गाय का मोल

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती न केवल किसानों की आर्थिकी मजबूत करने में सहायक है, बल्कि इस तकनीक से लोगों ने देसी गाय का मोल भी जाना है. प्राकृतिक खेती करना बिना देसी गौ वंश के संभव ही नहीं है, ऐसे में लोग अब देसी गाय पालने लगे हैं. प्राकृतिक खेती के लिए जरूरी जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत देसी गाय के गोबर और गौ मूत्र से तैयार किया जाता है. इसके अतिरिक्त इसमे बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि का भी प्रयोग होता है.

वीडियो.

इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है. इसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत व घन जीवामृत का छिड़काव किया जाता है. रासायनिक खाद की तुलना में ये तकनीकी काफी सस्ती है. इसमें किसानों को किसी भी तरह की खाद खेतों में डालने की जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी आवश्यकता नहीं है. इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है.

कृषि विभाग के सहायक तकनीकी प्रबन्धक लेखराज का कहना है कि किसान खुद मौके पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को समझ सके. इसके करसोग ब्लॉक के तहत विभिन्न क्षेत्रों से 35 किसानों को इंटर स्टेट एक्सपोजर विजिट पर कुरुक्षेत्र भेजा जा रहा है. उनका कहना है कि वहां किसान प्रदेश के पूर्व राज्यपाल के आचार्य देवव्रत के फार्म हाउस की विजिट करवाई जाएगी.

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