कुल्लू: दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी बाधा मंजिल के आड़े नहीं आ सकती. इस बात को सार्थक कर दिखाया है अंतरराष्ट्रीय स्कीयर बन चुकी मनाली के एक छोटे से गांव बुरूआ की आंचल ठाकुर ने. आंचल ने न सिर्फ अपनी मेहनत से ऊंचाइयां छुई बल्कि देश को स्कीइंग में पहला मेडल भी दिलाया.
नन्हीं आंचल जब नंगे पांव बर्फ पर बेखौफ भाग जाया करती थी और मां के बार-बार टोकने पर भी माइनस तापमान में अठखेलियां करने से बाज नहीं आती थी. भूख-प्यास सब कुछ भूल जाती थी. आंचल दूसरे बच्चों की तरह लकड़ी के तीन फट्टे जोड़कर आईस बन चुकी बर्फ पर फिसलने के बचपन के आनंद को कभी नहीं भुला सकती.
गांव के स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान वह कई बार स्कूल से छुट्टी के बाद सीधे घर नहीं आती थी, बल्कि बस्ते और किताबों की परवाह किए बगैर बर्फ की ढलानों की ओर चली जाती और देर शाम ही घर वापिस लौटती.
कई बार आंचल के पिता को उसे घर वापिस लाने के लिए खुद जाना पड़ता था. हालांकि, आंचल के पिता भी साहसिक खेल स्कीइंग के काफी शौकीन रहे हैं जिसके चलते वह अपनी बेटी की जिद्द पर कदापि उसे फटकार नहीं लगाते थे.
जब आंचल आठवीं कक्षा में पढ़ती थी तो एक दिन वो बिन बताए अपने पिता का स्कीइंग सैट लेकर बर्फ की छलानों पर चली गई. क्योंकि आंचल छोटी थी और स्कीइंग सैट को संभालने के काबिल नहीं थी जिसके कारण उसके पैरों और टांगों में अनेक जगहों पर चोटें आई. उसे अच्छे से स्कीइंग सैट को लगाना भी नहीं आ रहा था.
पिता को यह सब देखकर एक बार बुरा जरूर लगा, लेकिन वह आंचल के जुनून से बेखबर भी नहीं थे. वह समझ चुके थे कि आंचल अब रूकने वाली नहीं है और डांट-फटकार तो फिजूल है. आंचल के पिता रोशन लाल ने उस दिन के बाद स्वयं उसे प्रशिक्षण देना शुरू किया.
वह सर्दियों में समय निकालकर हर रोज आंचल के साथ स्कीइंग सैट को उठाकर दूर ढलानों तक जाते और उसे स्कीइंग की बारीकियां समझाते. कुछ ही हफ्तों में आंचल ने स्कीइंग सैट के साथ कम कोण की ढलानों पर स्वतंत्र रूप से खेलना शुरू कर दिया.
आंचल ने बर्फ के दिनों स्कीइंग के खेल को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था. वह अपने बचपन के दोस्तों की परवाह किए बगैर स्कीइंग सैट उठाती और सोलंग की ओर चल पड़ती थी. अक्सर घर लौटने में देरी हो जाने पर माता-पिता उसे लेने के लिए चले जाते थे. भूख-प्यास की भी उसे परवाह नहीं होती.
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आंचल का मकसद केवल और केवल स्कीइंग जैसे खतरनाक और साहसी खेल में महारत हासिल कर अपने परिवार, समाज व प्रदेश का गौरव बढ़ाना था. वह किसी से भी पीछे नहीं रहना चाहती थी. बर्फीली ढलानों पर अनेक जगहों से खिलाड़ी अपने करतब दिखाते अक्सर देखे जा सकते हैं. मन में हमेशा आगे निकलने की सोच को पाले आंचल इन खिलाड़ियों से अपने-आप में कहीं न कहीं स्पर्धा करती रहती.
इस स्पर्धा में कभी वह हताश भी हो जाती, लेकिन दूसरे दिन और ऊर्जा के साथ ढलानों पर उतरती. सभी को अचम्भित करती वह धीरे-धीरे आस-पास के स्कीयर्ज से आगे बढ़ने लग पड़ी. 1996 में जन्मी आंचल की प्रतिभा पर महज 13 साल की उम्र में जब भारतीय शीतकालीन खेल संघ की नजर पड़ी तो संघ ने उन्हें कोचिंग के लिए यूरोपियन देशों में भेजा.
आंचल ने ऑस्ट्रिया, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड में स्कीइंग की कोचिंग प्राप्त की. पांच साल की आयु में स्कीइंग शुरू करने वाली आंचल ने 10 साल की आयु में ही विभिन्न स्कीइंग प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था. वर्ष 2006 में मनाली में हिमालय स्की कप प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया.
2007 में विंटर स्पोर्टस कार्निवाल मनाली में पहले स्थान पर रही. 2008 में नारकण्डा में आयोजित कनिष्ठ चैम्पियनशिप में दूसरा स्थान अर्जित किया. 2009 में मनाली में आयोजित बसन्त जुनियर चैम्पियनशिप में पहले स्थान पर रही. 2011 में उत्तराखण्ड के औली में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान जबकि 2011 में जुनियर स्की ओपन चैम्पियनशिप मनाली में शीर्ष पर रही.
जम्मु-कश्मीर के गुलमर्ग में 2014 में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता, औली में आयोजित जुनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता तथा 2014 में मनाली स्की कप तीनों में पहला स्थान अर्जित किया. 2017 में मनाली में सलालम राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता तथा जांईट सलालम प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान पर रही.
मनाली में 2019 में आयोजित वरिष्ठ राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता में दूसरा, जांईट सलालम प्रतियोगिता में भी दूसरा तथा 2019 में ही उत्तराखण्ड के औली में सुपर-जी राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता में दूसरे जबकि औली में पैरलैल स्लालम प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आंकी गई.
उत्तराखण्ड के औली में राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्डिंग प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्कीयर घोषित की गई. अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं पर नजर डालें तो आंचल ने लेबनान में वर्ष 2009 में आयोजित एशियन बाल स्की प्रतियोगिता, 2010 में इटली के एबिटोन में अंतर्राष्ट्रीय बाल चैम्पियनशिप, 2011 में कोरिया में एशियन बाल स्की प्रतियोगिता तथा 2011 में ही स्वीट्जरलैण्ड में एफआईएस रेस सेंट मोरिस में भाग लिया.
ऑस्ट्रिया में 2012 में आयोजित प्रथम विंटर यूथ ओलंपिक खेलों में भाग लिया. 2013 में ऑस्ट्रिया में विश्व स्की चैम्पियनशिप, 2015 में अमेरिका के कोलाराडो में आयोजित विश्व स्की चैम्पियनशिप में भाग लेकर अंतिम दौड़ को सफलतापूर्वक पास किया. रूस के सोची में 2016 में जुनियन विश्व स्की मुकाबले में भाग लिया.
भारत के लिए पहली बार आंचल ठाकुर ने किया ये कमाल
2017 में स्वीट्जरलैण्ड के मोरिस में विश्व स्की चैम्पियनशिप में अंतिम रेस के लिए क्वालीफाई किया. जापान के सापोरो में 2017 में एशियन विंटर खेलों में भाग लिया. आंचल ने तुर्की में 2018 में आयोजित एफआईएस इण्टरनेशनल एल्पाईन स्कीइंग प्रतियोगिता में भारत के लिए आज तक का पहला कांस्य पदक अर्जित कर देश व प्रदेश का गौरव बढ़ाया.
कांस्य पदक के साथ आंचल ठाकुर. आंचल ठाकुर को उनकी उपलब्धियों पर उन्हें हिमाचल परशुराम पुरस्कार-2019 से अलंकृत किया गया. इससे पूर्व उन्हें अनेक अन्य पुरस्कार मिले हैं जिनमें हिमाचल गौरव पुरस्कार-2018, हिमाचल महिला आयोग पुरस्कार-2018, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ पुरस्कार, एडवेंचर स्पोर्टस एक्सपो एशिया पुरस्कार-2018, जी टीवी स्पोर्टस पुरस्कार-2018 और हिंदुस्तान टाईम्स आउटस्टैंडिंग यूथ फोरम पुरस्कार-2015 शामिल हैं.
क्या कहती है आंचल?
आंचल का मानना है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत से जीवन में किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है. महिलाओं को यदि अवसर प्रदान किया जाए तो वह किसी से पीछे नहीं हैं. डीएवी चण्डीगढ़ से स्नातक आंचल कहती है कि वह लड़कियों को इस प्रकार की साहसिक खेलों को अपनाने के लिए प्रेरित करने का कार्य करना जारी रखेगी.
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