कुल्लू:हिमाचल प्रदेश का जिला कुल्लू जहां पूरे देश में अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है. वहीं यहां के नदी नाले इस सुंदरता को बढ़ाते हैं. ऐसे में नदी नालों का ठंडा पानी यहां पर नीली क्रांति को भी तेज गति दे रहा है. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जिला कुल्लू में ट्राउट मछली के उत्पादन के लिए 350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण कराया गया है. जिससे 350 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन का लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद बढ़ गई है.
350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण:दरअसल, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जिला कुल्लू में 350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण किया गया है. मत्स्य पालक द्वारा रेसवेज में ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में ट्राउट मछली के उत्पादन से किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी. मत्स्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एक ट्राउट रेसवेज जिसकी लंबाई 17 मीटर, चौड़ाई दो मीटर व गहराई डेढ़ मीटर होती है. उसमें ट्राउट पालक पांच हजार ट्राउट मछली का बीज को डालकर एक मीट्रिक उत्पादन कर सकता है.
350 मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य:जिला में करीब 350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण पूरा होने से 350 मीट्रिक टन उत्पादन संभव हो सकेगा. वर्तमान में कुल्लू जिले में करीब 150 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा रहा है. भारत नार्वे ट्राउट कृषि परियोजना के माध्यम से वर्ष 1991 ट्राउट फार्म पतलीकूहल में दोनों सरकारों की सहायता एक आदर्श फार्म की नींव रखी गई. तब से यहां पर लोगों का ट्राउट पालन के प्रति रूझान बढ़ा है. आज कुल्लू में ही ट्राउट पालकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. बता दें, 30 वर्ष पहले जिले में ट्राउट मछली उत्पादकों की संख्या मात्र दो थी, जो अब बढ़कर 135 हो गई है.
पूर्व पीएम भी ट्राउट मछलियों के थे बड़े शौकीन:कुल्लू के ठंडे पानी में पैदा होने वाले ट्राउट मछली की डिमांड महानगरों में भी काफी होती है. यहां से ट्राउट मछली को रोजाना बर्फ के डिब्बों में पैक करके महानगरों में भेजा जाता है. ट्राउट मछली 500 से लेकर ₹800 प्रति किलो तक मिलती है. बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपति भी इस मछली का शौक रखते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जब भी कुल्लू आते थे तो वह भी ट्राउट मछली को बड़े शौक से खाते थे. इसके अलावा दिल्ली में भी कई बार बड़े-बड़े सरकारी कार्यक्रमों में ट्राउट मछली अपनी खास जगह रखती है.