किन्नौर:भारत-चीन के बीच सीमा को लेकर जारी तनाव के बीच ईटीवी भारत चीनी सीमा से सटे गावों में ग्राउंड जीरो पर हालात जानने पहुंचा. जिला मुख्यालय रिकांगपिओ से नमज्ञा की दूरी 90 किलोमीटर है.
नमज्ञा गांव पहुंचने के बाद जब हमने ग्रामीणों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सेना ने आज तक नमज्ञा गांव को परिवार की तरह संभाल कर रखा है. इसी बीच बातचीत के दौरान नमज्ञा गांव के पंचायत प्रधान रहे देवी राम नेगी ने भारत-चीन के बीच के रिश्तों के कई किस्से सुनाए.
नेगी ने बताया कि 1954 से 1958 तक किन्नौर और चीन के गांव शिपकिला के साथ खूब व्यापार होते थे. तब भारत-चीन की सीमा पर कोई सेना तैनात नहीं थी. दोनों देशों की सीमाओं के ग्रामीण एक दूसरे के मित्र हुआ करते थे और व्यापार के लिए सीमा के आर-पार आना-जाना लगा रहता था.
चीन के आधिपत्य के बाद शिपकी गांव का भी चीन में विलय हो गया. देवी राम ने कहा कि 1958 को वह पहली बार अपने पिता के साथ तिब्बत की व्यापार यात्रा पर गए थे. उस दौरान तिब्बत और किन्नौर में खाद्य सामग्री का व्यापार होता था. चीनी सीमा का व्यापार भारतीय मुद्रा में नहीं बल्कि बार्टर सिस्टम (वस्तु विनिमय) से किया जाता था.
देवी राम ने बताया कि किन्नौर-चीन सीमा का नाम पहले शिपकिला नहीं था. इसका नाम पीमा-ला था. पीमा मतलब दो दर्रों को जोड़ने वाला और ला का मतलब पहाड़ी रास्ता, लेकिन अब इसका नाम चीन के शिपकी गांव के सीमा से सटने के कारण शिपकिला रखा गया है. चीन के शिपकी और भारत के शिपकिला गांव के लोग दोस्त हुआ करते थे.
चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा कर लिया था उसके बाद किन्नौर के लोगों का संपर्क शिपकी गांव से हमेशा के लिए टूट गया. उनके व्यापारिक मित्र आज भी वहां हैं, लेकिन सीमा विवाद के बाद अब व्यापार के साथ दिल के रिश्ते भी चीन ने खत्म करवा दिए हैं.