पालमपुर: कारगील युद्व के परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को कौन नहीं जानता. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी पुण्यतिथि पर आज उनके परिवार और पालमपुर प्रशासन ने श्रद्धांजलि अर्पित की. आज से ठीक 21 बरस पहले 7 जुलाई 1999 को करगिल की जंग के सबसे बड़े नायक ने सर्वोच्च बलिदान दिया था.
बता दें कि शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर,1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. कैप्टन विक्रम बत्रा को कारगिल के शेरशाह नाम से भी जाना जता है. विक्रम बत्रा ने 18 साल की आयु में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था. वह नेत्र बैंक के कार्ड को हमेशा अपने पास रखते थे.
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की मां कमलकांता की श्रीराम चरितमानस में गहरी श्रद्धा थी. जिसके चलते उन्होंने अपने दोनों जुड़वां बच्चों का नाम लव-कुश रखा था. लव यानी विक्रम और कुश यानी उनका भाई विशाल. विक्रम बत्रा की पढ़ाई पहले डीएवी स्कूल में हुई थी. उसके बाद उनका सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिला करवाया गया. सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देखकर और अपने पिता से देश प्रेम की कहानियों को सुनकर विक्रम में बचपन से ही देश के प्रति प्रेम प्रबल हो गया था.
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा सिर्फ पढ़ाई में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि खेलों में भी उनकी खास रूचि थी. वह एक उम्दा खिलाड़ी होने के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग भी लिया करते थे.
जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में उन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी. इसके साथ ही विक्रम ने सीडीएस की भी तैयारी शुरू कर दी थी. हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन देश सेवा का सपना लिए विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया था. विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया था.