हमीरपुर: जिला के सर्वोच्च स्वास्थ्य संस्थान मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल हमीरपुर में डॉक्टरों की भरमार है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी मरीजों पर भारी पड़ रही है. हालात ऐसे हैं कि डॉक्टरों को बैठने के लिए जगह तक नहीं है और स्वास्थ्य उपकरण ऐसे इस्तेमाल किए जा रहे हैं जो कि चलन से बाहर हैं. अब मेडिकल कॉलेज में एक नई मशीन स्थापित करने के लिए प्रक्रिया चल रही है. जिसे पीपीपी मोड पर चलाने के लिए सरकार स्तर पर मामला उठाया गया है.
सुविधाओं की कमी से रेफर होते हैं मरीज
मेडिकल कॉलेज हमीरपुर में तीन ऑपरेशन थियेटर वर्तमान समय में हैं, लेकिन इनमें सुविधाओं की कमी मरीजों पर भारी पड़ रही है. हालात ऐसे हैं कि आईसीयू और आधुनिक ब्लड बैंक ना होने की वजह से मेडिकल कॉलेज हमीरपुर से मरीज टांडा मेडिकल कॉलेज और आईजीएमसी शिमला और पीजीआई चंडीगढ़ के लिए रेफर किए जाते हैं. महिलाओं की डिलीवरी के केस में केस कॉम्प्लिकेटेड होने पर भी अधिकतर मरीजों को रेफर ही किया जाता है.
जिला अस्पताल में चल रहा मेडिकल कॉलेज
साल 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मेडिकल कॉलेज हमीरपुर के निर्माणाधीन भवन का शिलान्यास किया था, लेकिन 2 साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद भी मेडिकल कॉलेज हमीरपुर जिला अस्पताल में ही चल रहा है. जिस वजह से यहां पर मरीजों के साथ ही डॉक्टरों को भी दिक्कत पेश आ रही है.
हर विभाग में 8 से 10 डॉक्टर तैनात हैं
वहीं, कुल 125 डॉक्टर मेडिकल कॉलेज हमीरपुर में वर्तमान समय में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी यहां पर मरीजों के साथ ही डॉक्टरों पर भी भारी पड़ रही है. मेडिकल कॉलेज हमीरपुर के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके अग्निहोत्री का कहना है कि मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल हमीरपुर के लिए डिजिटल एक्सरे मशीन खरीदी गई है. जिसकी लागत एक करोड़ रुपए है.
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