मंडी: जिला मंडी के ऐतिहासिक पर्यटन स्थल पराशर ऋषि की तपोस्थली पराशर झील तक पैदल पहुचंने के लिए ट्रैकिंग रूट विश्व के पर्यटन मानचित्र पर नजर आएंगे पराशर झील के आसपास के ट्रैक रूटों की जीपीएस मार्किंग होगी, इसके लिए काम शुरू भी हो चुका है.
अभी तक दो ट्रैक रूटों की मार्किंग की जा चुकी है. इसमें थट्टा से पराशर झील तक के ट्रैक का संलेखन किया जा चुका है, जिसकी दूरी 9 किलो मीटर बनती हैI पराशर से लगशाल की जीपीएस मार्किंग भी कर ली गयी है.
शीघ्र ही क्षेत्र के अन्य गांव भनूठी, कालंग आदि की भी जीपीएस मार्किंग कर पूरे क्षेत्र को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाया जाएगा और देस विदेश के पर्यटक पराशर झील तक पहुंचने के रोमांच और यहां पाई जाने वाली जड़ी बूटियां व पक्षियों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे.
साथ ही ट्रैकिंग के दौरान सैलानी भटकेंगे भी नहीं. केंद्र सरकार के पर्यायवरण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण, पर्यटन और आजीविका वृद्धि के तहत चल रहे प्रोजक्ट से यह काम होगा जिसमें ऐतिहासिक पराशर झील और आसपास के क्षेत्रों में इको टूरिज्म के माध्यम से युवाओं को महिलाओं के लिए रोजगार सृजन होगा. प्रोजेक्ट के प्रभारी विशेषज्ञ पंकज खन्ना व काव्या अरोड़ा ने इसकी पुष्टि की है. डीएफओ मंडी सुरेंद्र कश्यप ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में स्थानीय लोगों की मदद ली जा रही है.
चार गांव चिन्हित, यहां पर्यटन की दृष्टि से यह होगा
पराशर ऋषि मंदिर के निकट चार गांव (लगशाल, थट्टा ,भनोठी, कालंग) को चयनित किया गया है. जहां इको टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा. पराशर झील के पर्यावरण पर पर्यटन से कोई दुष्प्रभाव ना हो इसलिए यहां पर होटलों कि बजाय होमस्टे व कैम्पिंग को प्रोत्साहित किया जाएगा.
पराशर में पर्यटकों के ठहरने के कैंपिंग/टेंट्स की व्यवस्था की जाएगी. पर्यटक स्थानीय लोगों के घरों के होम-स्टे में ही रुकेंगे और स्थानीय संस्कृति व व्यंजनों का भी आनंद लेंगे. बेरोजगार युवाओं को ट्रैक गाइड, बर्ड वाचिंग, सॉफ्ट स्किल्स व हॉस्पिटैलिटी आदि में प्रशिक्षण दिया जाएगा.
होगी हेरिटेज वॉक
योजना के तहत थट्टा में एक हेरिटेज वॉक भी करवाई जाएगी जिससे बाहर से आने वाले पर्यटक हिमाचली गांव के परिवेश के विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं से रू-ब-रू होंगे. पराशर के आसपास के जंगल जैव विविधता से भरपूर हैं जिसमे विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे जैसे बान, बुरांश, बेखल, केयोश, देवदार, भेरल, रई, शेगल आदि देखे जा सकते हैं और साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर और पक्षी भी देखे जा सकते हैं.
स्थानीय उत्पादों को भी मिलेगी पहचान
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत स्थानीय कारीगरों के हस्त शिल्प जैसे शाल, पट्टू, टोकरी, मंजरी आदि का भी प्रोत्साहन किया जाएगा. साथ ही सेल काउंटर भी लगेंगे. जहां स्थानीय लोग अपने उत्पादों को बेच सकेंगे. वहीं, पारंपरिक घरों का दौरा कर उन्हें स्तरोन्नत होगा. दिए ताकि घरों को परंपरागत रूप से ही सुसज्जित कर उन्ही में पर्यटकों को सुविधाएं भी दी जा सकें.