बिलासपुर: कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से दुनियाभर में लोग ही परेशान नहीं हैं, बल्कि इससे जरूरी उत्पादन पर भी असर पड़ा है. अगर मत्स्य उत्पादन की बात करें तो ये दिनों दिन घटता ही जा रहा है. इसके अलावा फोरलेन निर्माण कार्य के दौरान निकली मिट्टी को झील में डालने के अलावा कोलडैम बनने के बाद पानी की कम आपूर्ति और सिल्ट फिश प्रोडक्शन में कमी के बहुत बड़े कारण माने जा रहे हैं.
इसके चलते कुछ समय पहले मत्स्य विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में चिंतन व मंथन के दौरान झील की स्टडी करवाए जाने का निर्णय लिया गया. कोलकाता संस्थान के विशेषज्ञ झील की स्टडी कर रहे हैं जिसके लिए विभाग के साथ संस्थान का करार हुआ है. एक साल तक स्टडी करने के बाद तैयार रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा.
मत्स्य उत्पादन घटकर 800 मीट्रिक टन पर पहुंचा
उल्लेखनीय है कि मत्स्य उत्पादन में औसतन देश भर में अग्रणी आंके जा चुके गोबिंद सागर में पिछले कुछ सालों से मत्स्य उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है. 2012 से 2014 के बीच झील में मत्स्य उत्पादन लगभग 1300 मीट्रिक टन हुआ करता था जो कि बाद में घटकर 800 मीट्रिक टन पर आ पहुंचा. फिर हर साल घटता गया और स्थिति यह है कि अब यह आंकड़ा 300 मीट्रिक टन तक नीचे आ गया है.
मत्स्य उत्पादन घटने का सीधा असर मत्स्य कारोबार पर पड़ा है और भविष्य के लिए मछुआरों की रोजी पर भी संकट खड़ा हुआ है. मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम बनने के बाद जलस्तर में हुई कमी की वजह से झील में मछली के ब्रीडिंग व फीडिंग ग्राउंड खत्म हो गए. रही सही कसर फोरलेन के निर्माण कार्य के दौरान झील में मलबा डंपिंग ने पूरी कर दी.
साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह
झील में मत्स्य उत्पादन में भारी गिरावट से चिंतित मत्स्य विभाग ने रिसर्च करवाने का निर्णय लिया है. जिसके लिए कोलकाता संस्थान के प्रबंधन को पत्र लिखकर साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह किया गया. प्रबंधन की ओर से रिसर्च किए जाने के लिए मंजूरी मिल चुकी है और टीम इसी महीने हिमाचल दौरे पर आकर स्टडी शुरू करेगी.
बताते चलें कि कोरोना संकट की वजह से हिमाचल का मछली कारोबार प्रभावित हो गया है. मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब सहित अन्य राज्य कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की स्थिति में हैं जिसके चलते हिमाचली फिश को मार्केट नहीं मिल पा रही. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है.
डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही
अहम बात यह है कि कोलडैम में मत्स्य विभाग द्वारा तैयार की गई डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही. जिला बिलासपुर में टैम्प्रेचर बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी. प्रदेश में गोबिंद सागर, कोलडैम, पौंगडैम, रणजीत सागर डैम और चमेरा डैम बड़े जलाशय हैं. जहां बड़े स्तर पर मछली कारोबार होता है.