शिमला: हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड से इंजीनियर के तौर पर सेवानिवृत्त भगत सिंह राणा अब ऑर्गेनिक खेती (organic farming in himachal) में नाम कमा रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने हिमाचल में बेसहारा गायों (Stray cow in himachal) को भी सहारा दिया है. केमिकल के जहर से मुक्त खेती करने वाले भगत सिंह राणा ने बागवानी में भी प्राकृतिक खेती की विधि को अपनाया है. उन्होंने सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग का प्रशिक्षण लेकर वहां सीखे टिप्स आजमाए और सेब उत्पादन में प्रयोग किए.
परिणाम यह निकला कि केमिकल के जहर से मुक्त सेब विश्व ऑर्गेनिक मेला- 2019 दिल्ली में उनका सेब 180 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिका. भगत सिंह राणा शिमला जिले के चिड़गांव के तहत संदासु गांव के रहने वाले हैं. उनके पास पास 25 बीघा जमीन है और वे सारी की सारी जमीन में प्राकृतिक खेती (Engineer started organic farming in Shimla) ही करते हैं. भगत सिंह राणा ना केवल मक्की गेहूं और बेमौसमी सब्जियां उगाते हैं बल्कि पारंपरिक अनाज कोदा भी पैदा करते हैं. राणा का कहना है कि प्राकृतिक खेती में न्यूनतम खर्च होता है और सालाना डेढ़ लाख रुपए से अधिक लाभ मिलता है. जबकि रासायनिक खेती में 80 हजार रुपए खर्च करने पर महज 1 लाख 20 हजार की आय होती है.
देसी गाय का महत्व समझते हुए भगत सिंह राणा ने गौशाला भी संचालित की है. यहां 40 बेसहारा गाय आश्रय पा रही हैं. इन गायों के गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खाद तथा जीवामृत बनता है. संदासु में अपने बागीचे में भगत सिंह राणा सेब की परंपरागत रॉयल डिलीशियस किस्म के अलावा रेड सुपर चीफ व स्पर किस्म के सेब भी उगा रहे हैं. साथ ही स्टोन फ्रूट (stone fruit in himachal) भी पैदा कर रहे हैं. राणा ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खेती और बागवानी में ऑर्गेनिक कॉन्सेप्ट लागू करने की ठानी.
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तीन साल पहले कृषि विभाग के जरिए उन्होंने कुफरी में 6 दिन तक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के मॉडल (Subhash Palekar Natural Farming Model) का प्रशिक्षण लिया. उसके बाद खेतों में बेमौसमी सब्जियों में प्राकृतिक तरीके से केमिकल मुक्त खेती शुरू की. सफलता मिलने के बाद उन्होंने बागवानी में भी इसी मॉडल का प्रयोग किया. राणा के अनुसार उनके पास अपनी खुद की पाली हुई पांच देसी गाय हैं. वे आसपास के इलाके के किसानों बागवानों को भी प्राकृतिक खेती के तरीके बताते हैं.