शिमला: राज्य सरकार के वन विभाग ने बेशक तेंदुओं की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए रेडियो कॉलर लगाए हैं, लेकिन राजधानी शिमला में ही विभाग आम जनता की नरभक्षी तेंदुओं (Cannibal Leopard) से सुरक्षा नहीं कर पा रहा है. अगस्त महीने से लेकर अब तक तेंदुए ने शिमला में ही दो बच्चों की जान ले ली है, लेकिन वन विभाग उन्हें पकड़ने में कामयाब नहीं हुआ है. यहां तक की मानवाधिकार आयोग (Human rights commission) ने वन विभाग (Forest department) को कई निर्देश जारी किए हैं, लेकिन तेंदुआ पकड़ में नहीं आया है. शहर में जगह-जगह पिंजरे लगाए हैं.
शिमला में अगस्त महीने में कनलोग इलाके से एक बच्ची को तेंदुआ उठा ले गया था. कुछ दिन बाद बच्ची का धड़ मिला था. अब हफ्ता भर पहले शिमला के डाउनडेल से पांच साल के बच्चे को तेंदुआ उठाकर ले गया था, लेकिन अभी तक ना ताे तेंदुए की पहचान हाे पाई है और ना ही उसे पकड़ा गया है. मानवाधिकार आयाेग ने तेंदुए काे आदमखाेर घाेषित करने के बाद उसे जिंदा पकड़ने या फिर मारने के आदेश दिए हैं. इसके बाद वन विभाग (Forest department) ने जगह-जगह ट्रेसिंग के लिए सीसीटीवी कैमरे (cctv cameras) और पिंजरे लगाए हैं. जाे कैमरे वन विभाग ने जंगल में लगाए हैं, उसमें तेंदुए की मूवमेंट (leopard movement) ताे कैद हाे रही है, लेकिन पिंजरे में रखे मांस काे तेंदुआ छू तक नहीं रहा.
हाल ही में काेटगढ़ से आधुनिक पिंजरा मंगवाया है मगर उससे भी काेई फायदा नहीं हुआ है. रविवार काे भी वन विभाग और वाइल्ड लाइफ विंग की टीम (Wildlife Wing team) ने सभी पिंजराें की जांच की मगर कहीं पर भी तेंदुआ पकड़ में नहीं आया. उल्लेखनीय है कि प्रदेश मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश पीएस राणा (State Human Rights Commission Chairman Justice PS Rana) व सदस्य डॉ. अजय भंडारी (Dr. Ajay Bhandari) की खंडपीठ ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए पाया कि उक्त तेंदुआ आदमखोर हो चुका है इसलिए यह जनसाधारण के जीवन के लिए खतरा बन चुका है. इसके लिए आयोग ने वन विभाग को जिम्मेदार ठहराया और जनसाधारण को तेंदुए के आतंक से बचाने के लिए आयोग ने कड़े निर्देश जारी किए. आयोग ने वन विभाग को निर्देश दिए कि तेंदुए को तुरंत जिंदा पकड़ लिया जाए और उसे उसके पूरे जीवन तक पिंजरे में रखा जाए.