कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में सेब के सीजन की शुरुआत हो हो चुकी है. ऐसे में अब हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती में भी विदेशी किस्मों ने अपना कब्जा जमाया है. विदेशी सेब की फसल जल्दी होने के चलते इसका बागवानों को भी काफी फायदा मिल रहा है और भारतीय किस्मों के बदले में अर्ली वैरायटी के सेब को सब्जी मंडी में अच्छे दाम भी मिल रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में सेब की सैकड़ों देसी और विदेशी किस्मों को उगाया जा रहा है. इनमें दुनिया के 20 से अधिक देशों से अब तक 200 से ज्यादा की किस्में हिमाचल पहुंच चुकी हैं. अकेले अमेरिका से ही 75 से अधिक सेब की किस्में हिमाचल आ चुकी हैं.
हिमाचल प्रदेश में मौजूदा समय में यूएसए, यूके, इजराइल, रूस, चीन, कीनिया, अर्जेंटीना, ग्रीक, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, नीदरलैंड, फ्रांस आदि देशों से लाई गई सेब की किस्मों को बोया जा रहा है. सेब की इन किस्मों को भारत मंगवाने का यह क्रम एक सदी पहले शुरु हो चुका है और जो अब तक चल रहा है.
हिमाचल की अपनी देसी किस्मों के अलावा भारत के ही पहाड़ी क्षेत्रों में एकत्र किस्मों को भी कई क्षेत्रों के बागवान लगा रहे हैं. जिनमें जम्मू कश्मीर, सिक्किम, मेघालय उत्तराखंड से लाई गई किस्मे भी शुमार है. हालांकि इनमें सभी किस्में व्यावसायिक दृष्टि से उतनी उपयोगी नहीं है. जितने अर्ली वैरायटी के पौधे बागवानों को फायदा दे रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में सेब की रॉयल रेड डिलीशियस किस्म सबसे ज्यादा उगाई जा रही हैं, लेकिन अब अर्ली वैरायटी के तौर पर गाला, जेरो माईन, रेडकॉन, गेल गाला, के अलावा 90 से ज्यादा किस्म के सेब की अर्ली वैरायटी की पैदावार हिमाचल में की जा रही है. वहीं, इन किस्मों को बाजार में दाम भी अच्छे मिल रहे हैं.