बिलासपुर: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री व श्री नैना देवी से विधायक राम लाल ठाकुर ने कहा कि शिक्षा पद्धति व देश के उच्चतम शिक्षा संस्थानों में भाजपा और आरएसएस का दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अभी हाल ही के घटनाक्रम पर (IIT Kharagpur calendar controversy) नजर दौड़ाते हुए उन्होंने कहा कि आईआईटी खड़गपुर भारतीय इतिहास संबंधी आरएसएस की (MLA Ram Lal Thakur targets RSS) कपोल कल्पनाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने का माध्यम बन गया है.
अभी हाल ही में, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी खड़गपुर ने वर्ष 2022 का कैलेंडर जारी किया है, जिसका शीर्षक है 'Recovery Of The Foundation of Indian Knowledge Systems' (भारतीय ज्ञान प्रणालियों के आधार की प्राप्ति). यह कैलेंडर आईआईटी के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स द्वारा लाया गया. 18 दिसंबर को संस्थान के 67वें दीक्षांत समारोह के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका अनावरण किया था. लॉचिंग के बाद से ही इस कैलेंडर की (IIT Kharagpur calendar controversy) चौतरफा आलोचना भी हो रही है. जिसके अनुसार कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर आश्चर्य जताया है और कहा कि वे अब भी इस कॉन्टेंट का अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर यह कहां से आया है.
होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (Homi Bhabha Center for Science Education) के प्रोफेसर अनिकेत सुले ने कहा, 'क्या जिन लोगों ने कैलेंडर को तैयार किया है, उन्होंने पिछले 50 सालों में भारतीयता पर हुए अध्ययनों को पढ़ा है? कैलेंडर में भारतीय सभ्यता के कई पहलुओं के बारे में बताते हुए कहा गया कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो की सरासर गलत है. उन्होंने कहा यही नहीं आईआईटी के इस कैलेंडर (Indian Institute of Technology Kharagpur) में बताया गया है कि कौटिल्य से पहले भी भारत में अर्थव्यवस्था, कम्युनिटी प्लानिंग, कृषि उत्पादन, खनन और धातुओं, पशुपालन, चिकित्सा, वानिकी आदि पर बात की गई है.'
कैलेंडर में कहा गया कि ऐसा बताया जाता है कि 300 ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भारत में इन चीजों का जिक्र किया गया था, लेकिन इससे भी प्राचीन मनुस्मृति में पहले ही ऐसे तमाम पहलुओं पर बात की गई थी, जो कि किसी भी ऐतिहासिक प्रमाणिकता पर खरा नहीं उतरते हैं. उन्होंने कहा कि देश के तमाम बुद्धिजीवियों और अध्यन-अध्यापन से जुड़े लोगों, वैज्ञानिकों, प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं को इकट्ठे होकर आवाज उठानी चाहिए ताकि समाज में इतिहास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को झुठलाया नहीं जा सके.
ये भी पढ़ें :Manali winter carnival 2022: 2 जनवरी को सीएम करेंगे विंटर कार्निवल का शुभारंभ, जानें इस महोत्सव का इतिहास