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यमुनानगर के गुमथला राव गांव में बना इंकलाब मंदिर, यहां हर रोज शहीदों की याद में होता है मेले जैसा माहौल

शहीदों के सम्मान में उनके बलिदान को याद करने के लिए 23 मार्च को देश में शहीद दिवस मनाया जाता है. देश की आजादी के लिए मर मिट जाने वाले शहीद भगत सिंह उनके साथी राजगुरू और सुखदेव को आज के दिन श्रद्धांजलि दी जाती है. लेकिन यमुनानगर के एक मंदिर में शहीदों की यादें हर रोज ताजा रहती हैं. खबर में जानिए पूरी जानकारी. (Gumthala Rao village Inquilab Mandir)

Martyr Day in Yamunanagar Gumthala Rao village Inquilab Mandir
यमुनानगर के गुमथला राव गांव में बना इंकलाब मंदिर

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Published : Mar 23, 2023, 5:06 PM IST

यमुनानगर के गुमथला राव गांव में बना इंकलाब मंदिर

यमुनानगर: 'शहीदों की याद में हर बरस लगेंगे मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा'. इन पंक्तियों को भी बदलता है यमुनानगर के गुमथला राव गांव में बना इंकलाब मंदिर. यहां साल में एक बार नहीं बल्कि हर रोज शहीदों की याद में मेले जैसा माहौल होता है. यह मंदिर करनाल-यमुनानगर रोड पर स्थित है. गुमथला राव गांव के एडवोकेट वरयाम सिंह इसके संस्थापक हैं.

हिंदुस्तान में अपने भगवान के प्रसिद्ध से प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन किए होंगे, लेकिन अपने आप में अनोखा एक मंदिर यमुनानगर के गुमथला राव गांव में स्थित है. अनोखा इसलिए क्योंकि इस मंदिर में किसी भगवान की नहीं बल्कि देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों और शहीदों की पूजा की जाती है. इस मंदिर का नाम है इंकलाब मंदिर. शायद ही आपने इस तरह के मंदिर के बारे में कभी सुना हो. क्योंकि मंदिर का नाम सामने आते ही हमेशा भगवान को याद किया जाता है. लेकिन गुमथला राव के रहने वाले एडवोकेट विराम सिंह ने शहीदों की याद में साल 2000 में शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित कर इस मंदिर की स्थापना की.

खास बात यह है कि उन्होंने साल 2014 तक बिना किसी अनुदान के यहां राजगुरु सुखदेव सुभाष चंद्र बोस जैसे अनेक क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं स्थापित की और अब यहां करीब 150 क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं लगी हुई हैं. वरयाम सिंह बताते हैं कि उन्हें विचार आया कि जिन क्रांतिकारी शहीदों ने अपने खून से इस देश की धरती को सींचा उनकी याद में एक मंदिर का निर्माण किया जाए. इसी विचारधारा को लेकर वह आगे बढ़े और इंकलाब मंदिर में भी भगवान के मंदिरों की तरह रोजाना मेला जैसा लगता है.

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वहीं, मंदिर के संस्थापक का कहना है कि देश इस साल आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है, लेकिन उन्हें तब अफसोस होता है जब याद आती है कि अभी तक भी देश के लिए बलिदान देने वाले शहीदों को संवैधानिक तौर पर शहीद का दर्जा नहीं दिया गया. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस बार 75 वीं वर्षगांठ मनाते वक्त इन शहीदों को शहीद का दर्जा दिया जाए.

बता दें कि साल 2014 में राज्य मंत्री रहते करण देव कंबोज ने यहां इस मंदिर के 1 एकड़ जमीन का अनुदान दिया था ताकि इस मंदिर को बढ़ाया जा सके और यहां और वीर शहीदों की प्रतिमाएं लगाई जा सके. यह मंदिर उन वीर शहीदों की गाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं जो देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे गए.

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