पानीपत: चाइनीज सामान पर प्रतिबंध के बाद इस बार की दिवाली कुम्हारों के लिए नई रोशनी लेकर आई है. लोगों का रुझान अब मिट्टी से बने दियों, घड़ों और गमलों की तरफ तरफ बढ़ रहा है. जिससे कुम्हारों की चाक की रफ्तार तेज हो गई है. कोरोना महामारी के बाद से कुम्हारी का काम लगभग बंद हो गया था, लेकिन इस बार बढ़ती दीयों की डिमांड (Earthen Lamps Demand Increased ) से फिर से कुम्हारों का रोजगार पटरी पर लौटने लगा है. इन कुम्हारों को उम्मीद है कि अब उनका पुश्तैनी कारोबार फिर से लौट आएगा.
पानीपत के गढ़ सरनाई गांव (Gadhsarnai village Panipat) में मिट्टी के कारीगर करमचंद ने बताया कि वो इस काम को छोड़ने का मन बना चुके थे, लेकिन उन्होंने अपने आप को एक और मौका दिया. अब उन्होंने आधुनिकता के साथ जुड़ते हुए नए साजो सामान को तैयार करना शुरू किया. जिसे लोग पसंद कर रहे हैं. हरियाणा सरकार कई बार करमचंद को सम्मानित भी कर चुकी है. उन्होंने बताया कि वो दिवाली के त्योहार में अभी तक 500000 मिट्टी के दीयों का ऑर्डर तैयार करके मार्केट में पहुंचा चुके हैं.
अभी भी काम लगातार जारी है. उन्होंने कहा कि पहले चीन से बनी हुई लाइट हिंदुओं के त्योहार की रोशनी कम कर रही थी. अब प्रतिबंध के बाद भी पिछले साल के मुकाबले इस बार उन्हें ज्यादा ऑर्डर मिले हैं. जिससे उनकी इनकम में 20% का इजाफा हुआ है. करमचंद बैठने के लिए मिट्टी से बने बेंच, मटके और बर्तन बनाकर बाजार में बेचते हैं. इतना ही नहीं उन्होंने लगभग एक दर्जन महिलाओं को रोजगार भी दिया हुआ है. करमचंद का परिवार भी इस काम में उनका साथ देता है.