नूंह: रमजान का पाक महीना मुसलमानों के लिए बेहद खास होता है. इस पूरे महीने मुसलमान रोजा यानी उपवास रखते हैं, सूर्योदय से पहले और सूर्योदय के बाद ही खाना-पीना करते हैं. रमजान के महीने को इबादत और बरकत का महीना (holy month of Ramzan) माना जाता है. इस बार रमजान का महीना 2 अप्रैल से शुरू होगा. वैसे, इस पवित्र महीने की शुरुआत चांद दिखाई देने पर होती है. रमजान का महीना कभी 29 दिन और कभी 30 दिन का होता है.
रमजान के महीने का महत्व-रमजान का महीना नबी पाक के मुताबिक गमख्वारी का महीना है. गरीबों, यतीमों की मदद और उनका ख्याल रखने का महीना है. खासतौर से हर मुसलमान के लिए तमाम इंसानियत का ख्याल रखना जरूरी है, लेकिन रमजान के महीने में सदका और खैरात बेहद जरूरी है. ऐसा माना जाता है कि जकात, सदका दिए बिना ईद की नमाज कुबूल नहीं होती है.
रमजान महीने का इतिहास-इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज (जरूरी) किए गए. इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने पवित्र धर्मग्रंथ कुरान को नाजिल किया था. तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं. कई बार भूल से इंसान कुछ खा जाता है, उससे रोजा नहीं टूटता, लेकिन जैसे ही उसे याद आए तो सब कुछ बंद कर देना चाहिए. इस माह में एक नेक काम करने के बदले 70 नेकी का सवाब (पुण्य) मिलता है.
सहरी, इफ्तार और तरावीह- रमजान के दिनों में लोग तड़के उठकर सहरी करते हैं. सहरी खाने का वक्त सुबह-ए-सादिक (सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का वक्त) होने से पहले का होता है. सहरी खाने के बाद रोजा शुरू हो जाता है. रोजेदार पूरे दिन कुछ भी खा-पी नहीं सकते हैं. शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है और वाजिब नमाज अदा करने के रोजेदार तरावीह की नमाज अदा करते हैं.
हर व्यस्क मर्द-औरत पर फर्ज है रोजा- बड़ा मदरसा नूंह के संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन बताते हैं कि साल भर में एक महीना आता है, जिसमें जन्नत की तैयारी की जाती है. रोजा हर बालिग (व्यस्क) मर्द-औरत फर्ज है. इस महीने गुनाहों और गलत काम करने से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस पाक महीने को इबादत में गुजारना चाहिए और मुल्क की तरक्की और दुनिया में अमन व शांति की दुआएं करनी चाहिए. अगर कोई बीमार हो या रोजा रखने से बीमारी बढ़ने का डर हो तो उसे रोजे से छूट मिलती है. हालांकि, ऐसा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए. मुसाफिर को, प्रेग्नेंट लेडी और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को भी रोजे से छूट रहती है. बहुत ज्यादा बुजुर्ग शख्स को भी रोजे से छूट रहती है.