करनाल में मोटे अनाज को लेकर कार्यशाला का आयोजन करनाल: हरियाणा में मोटे अनाज का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों के लिए प्रभावी योजना तैयार की जा रही है. इसके लिए किसानों को बाजरा, मक्का, रागी सहित अन्य मोटे अनाज पर अधिक सब्सिडी देने और एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) से जोड़े जाने की भी तैयारी की जा रही है. इसके अलावा मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के साथ-साथ मोटे अनाज पर आधारित विभिन्न उत्पाद और व्यंजन तैयार करने के लिए युवाओं को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा. युवाओं और किसानों को वैल्यू एडिशन के गुण भी सिखाए जाएंगे.
करनाल की राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान की स्थापना दिवस के मौके पर हरियाणा कृषि विभाग के महानिदेशक नरहरी सिंह बांगड़ ने बताया कि सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास कर रही है. इसके लिए आगामी बजट में विशेष प्रोत्साहन दिए जाने की भी आशा है. उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के फायदों को देखते हुए हरियाणा में इसका रकबा बढ़ाने के लिए एफपीओ का सहारा लिया जाएगा और किसानों को बीज से लेकर उसकी मार्केटिंग तक हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी.
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नरहरी सिंह बांगड़ ने कहा कि हरियाणा सरकार ने बाजरा उत्पादक किसानों को भावांतर भरपाई योजना में शामिल किया गया है. बांगड़ ने कहा कि मिलेट्स के व्यंजन और अन्य उत्पाद बनाने के लिए इकाई स्थापित करने के लिए किसानों और युवाओं को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा. समारोह के मुख्य अतिथि और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डॉ. आरएस परोदा ने कहा कि इस संस्थान का भारत के खाद्य मिशन में बहुत बड़ा योगदान है और इसने किसानों को 200 से अधिक गेहूं व जौ की किस्में उपलब्ध कराई है, जिनके कारण भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है.
उन्होंने कहा कि संस्थान की बदौलत ही देश के पास इतना खाद्य भंडार है कि हम गेहूं का निर्यात कर पा रहे हैं. मोटे अनाज को लेकर उन्होंने कहा कि आज देश को स्वास्थ्य और जल बचाने के लिए मोटा अनाज उगाना पड़ेगा. महिलाओं और बच्चों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को देखते हुए हमें मोटा अनाज उगाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि अभी हमारे देश में बाजरे का क्षेत्र 8 मिलियन हेक्टेयर है जो जागरूकता के बाद और बढ़ेगा.
राष्ट्रीय गेहूं व जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि उनका संस्थान अब जैविक खेती पर शोध कर रहा है और इसके परिणाम आने में करीब तीन साल लगेंगे. उन्होंने कहा कि ऑर्गेनिक खेती के लिए किसानों को थोड़ा और प्रयास करना पड़ेगा. जैविक खेती के लिए देशी खाद व ग्रीन मेन्योर उगाना पड़ेगा.