नई दिल्ली:जेएनयू में हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए एमएचआरडी ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. वहीं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने इस समिति के गठन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि एमएचआरडी द्वारा इस तरह की समिति का गठन विश्वविद्यालय में उपस्थित शिक्षकों, कुलपति आदि प्रशासनिक अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.
जेएनयू में नए हॉस्टल मैनुअल और बढ़ी हुई फीस के रोलबैक को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों की समस्या सुलझाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. वहीं इसको लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी महापात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय में उठे छात्रों के विवाद को सुलझाने के लिए एक अलग से समिति का गठन करने कोई हल नहीं होता है.
उन्होंने कहा-
छात्रों की समस्या सुलझाने में सक्षम प्रशासनिक अधिकारी विश्वविद्यालय में मौजूद होते हैं. ऐसे में बिना किसी की सहमति के एमएचआरडी द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर केवल उसके सदस्यों को इसका अधिकार देना विश्वविद्यालय में मौजूद आला अधिकारियों की असक्षमता को दर्शाता है.
वहीं प्रोफेसर अश्विनी ने कहा कि सभी संस्थानों को हर तरह की स्वायत्तता दी जाती है, जिससे वो शिक्षा संस्थान बिना किसी भी भेदभाव के चला सकें. ऐसे में एमएचआरडी द्वारा विश्वविद्यालय की समस्याओं को सुलझाने के लिए बाहरी सदस्यों की समिति का गठन करने से संस्थान की स्वायत्तता का भी हनन होता है.
उन्होंने कहा कि जिस समस्या को सुलझाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया उस समस्या का आरंभ भी यूजीसी द्वारा जारी किए गए पत्र से हुआ है. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर सूचित किया था कि मेस में कॉन्ट्रैक्ट पर जो भी कर्मचारी लगाए जाएंगे उनका भुगतान यूजीसी वहन नहीं करेगी, उसका खर्चा विश्वविद्यालय खुद संभाले.