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DU में वीर सावरकर के जीवन पर आधारित 'हे मृत्युंजय' नाटक का हुआ मंचन - Delhi University

एबीवीपी और डूसू द्वारा स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित नाटक का आयोजन किया गया, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में छात्र आए थे.

DU में वीर सावरकर के जीवन पर आधारित नाटक का हुआ मंचन

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Published : Aug 13, 2019, 6:09 AM IST

नई दिल्ली:दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में स्थित शंकर लाल हॉल में 'हे मृत्युंजय' नाटक का मंचन हुआ. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ द्वारा आयोजित यह नाटक स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में छात्र आए थे.

DU में वीर सावरकर के जीवन पर आधारित नाटक का हुआ मंचन

इस नाटक के मंचन के दौरान वीर सावरकर के पोते रणजीत सावरकर भी मौजूद रहे. 'हे मृत्युंजय' नाटक के मंचन की शुरुआत में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष शक्ति सिंह ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि छात्र संघ कार्यालय का नाम वीर सावरकर के नाम पर रखा जाए जिसके लिए उन्होंने डीयू के कुलपति से यह मांग करने की बात कही.

तोड़-मरोड़ कर छात्रों तक पहुंचाई जाती है गाथा
साथ ही उन्होंने कहा कि छात्रों को वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों को समग्रता से समझने की जरूरत है क्योंकि कई जगह इन स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन गाथा को तोड़ मरोड़ कर छात्रों तक पहुंचाया जाता है. खासकर अंग्रेजी शासन वाले राज्यों में. उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे ही छेड़छाड़ के साथ स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी पाठ्यक्रम में भी दी जा रही है जो कि ठीक नहीं है.

'हे मृत्युंजय' नाटक का एक दृश्य

'स्वतंत्रता आंदोलन में कई क्रांतिकारियों ने अमूल्य योगदान दिया'
वहीं ' हे मृत्युंजय ' नाटक के मंचन के दौरान उपस्थित पूर्व स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के प्रपौत्र रणजीत सावरकर ने नाटक का मंचन देखने पहुंचे छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जो राष्ट्र अपना इतिहास भूल जाता है उसका भूगोल भी सुरक्षित नहीं रहता.

साथ ही कहा कि जब भारत आजाद हुआ था तो उसकी शुरुआती कुछ सालों में कई क्रांतिकारियों के विरुद्ध साजिश रची गई, जिसके तहत यह कोशिश की गई कि वीर सावरकर समेत कई क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में जो अमूल्य योगदान दिया है. वह आम जनता तक ना पहुंचे उसे लोग भूल जाए लेकिन आम लोगों में वीर सावरकर के प्रति स्नेह के चलते यह योजना सफल नहीं हो सकी.

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