हैदराबाद :यश चोपड़ा हिंदी सिनेमा का ऐसा नाम है, जिसने नौजवानों को प्यार का सलीका सिखाया. यश चोपड़ा को याद करने की वजह है कि आज उनकी बर्थ एनिवर्सरी है. 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के लाहौर में पैदा हुए यश चोपड़ा का अचानक जाना हिंदी सिनेमा के लिए आज भी एक बहुत बड़ी क्षति माना जाता है. यश चोपड़ा एक एक्टर बनने की ख्वाहिश रखते थे, लेकिन उनके अंदर के छिपे हुनर को पुराने जमाने की एक्ट्रेस ने खोज लिया और उन्हें निर्देशन की दुनिया में जाने की सलाह दे दी.
इस एक्ट्रेस की सलाह काम आई
यश चोपड़ा से पहले उनके बड़े भाई बीआर चोपड़ा फिल्म इंडस्ट्री में थे, जिन्होंने विशाल महाकाव्य 'महाभारत' को पर्दे पर उतारा था. भारत-पाक विजाभन के बाद यश चोपड़ा भाई के साथ मुंबई आ गए. यश चोपड़ा के भाई बीआर चोपड़ा हिंदी सिनेमा में अपना नाम स्थापित कर चुके थे और यश चोपड़ा का मन अभी भी अपने करियर को लेकर संघर्षशील था.
यश चोपड़ा ने भाई बीआर चोपड़ा का हाथ पकड़ा और निर्देशन में जुट गए. यश चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वैजयंती माला ने उनके हुनर को पहले ही पहचान लिया था और उन्हें फिल्म निर्देशन में ध्यान देने की बात कही थी.
यश चोपड़ा के निर्देशन की पहली फिल्म
1959 में यश चोपड़ा ने राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा को लेकर फिल्म 'धूल का फूल' डायरेक्ट की. इसके बाद 'धर्मपुत्र' (1961) बनाई, लेकिन साल 1965 में बनाई फिल्म 'वक्त' ने यश चोपड़ा का वक्त ही बदल दिया था, क्योंकि फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के तमाम झंडे गाड़ दिए थे. फिर 'इत्तेफाक' (1969) और 'दाग' (1973) जैसी माइलस्टोन फिल्मों ने यश चोपड़ा के इंडस्ट्री में पैर पूरी तरह जमा दिए.