कोलंबो : श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में विजेता बने गोटाबाया राजपक्षे वह व्यक्ति हैं, जिन्हें लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के साथ तीन दशक तक चले गृहयुद्ध को निर्दयतापूर्वक खत्म करने का श्रेय जाता है. गोटाबाया की द्वीपीय देश में विवादित एवं नायक दोनों की छवि है.
गोटाबाया राजपक्षे की जीत पर ईटीवी बारत से बात करते हुए ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर हर्ष पंत ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि यह भारत के लिए नई शुरुआत है.
उन्होंने कहा कि अब गौटाबाया राजपक्षे अब सत्ता में हैं, गोटाबाया और महिंद्रा राजपक्षे दोनों का भारत के लिए नजरिए अलग है.भारत और श्रीलंका में कुछ अनबन रही है भारत और श्रीलंका दोनों मिलकर काम करना होगा
बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध उन्हें युद्ध नायक मानते हैं वहीं अधिकतर तमिल अल्पसंख्यक उन्हें अविश्वास की नजर से देखते हैं.
70 वर्षीय गोटाबाया ने 1980 के दशक में भारत के पूर्वोत्तर स्थित काउंटर इंसर्जेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल में प्रशिक्षण लिया था. बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने वर्ष 2005 से 2014 में रक्षा सचिव की जिम्मेदारी निभायी थी.
वर्ष 1983 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की. गोटाबाया वर्ष 2012 और 2013 में रक्षा सचिव रहते भारत के दौरे पर आए थे.
तमिल मूल के परिवार, जिनके अपने गृहयुद्ध के दौरान मारे गये या लापता हो गये थे, गोटाबाया पर युद्ध अपराध का आरोप लगाते हैं.
सिंहली बौद्धों में गोटाबाया की लोकप्रियता से मुस्लिम भी डरे हैं. उन्हें आशंका है कि ईस्टर के मौके पर इस्लामी आतंकवादियों के गिरजाघरों पर किये गये हमले के बाद दोनों समुदायों में पैदा हुई खाई और चौड़ी होगी.
हिन्दू और मुस्लिमों की संयुक्त रूप से श्रीलंका की कुल आबादी में 20 फीसदी हिस्सेदारी है.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) का प्रत्याशी नामित होने के बाद अक्टूबर में पहली बार मीडिया से बातचीत में गोटाबाया ने कहा था कि अगर वह जीतते हैं तो युद्ध समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (यूएनएचआरसी) के समक्ष जतायी गयी प्रतिबद्धता या मेलमिलाप का सम्मान नहीं करेंगे.
उन्होंने कहा, 'हम संयुक्त राष्ट्र के साथ हमेशा काम करेंगे लेकिन पिछली सरकार के दौरान उनके (संयुक्त राष्ट्र) के साथ किये गये करार का सम्मान नहीं करेंगे.'
उल्लेखनीय है कि सितम्बर 2015 में यूएनएचआरसी की ओर से पारित प्रस्ताव का श्रीलंका सह प्रायोजक है, जिसमें मानवाधिकार, जवादेही और परिवर्ती न्याय को लेकर प्रतिबद्धता जतायी गयी है. 47 सदस्यीय परिषद् में भारत सहित 25 देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया.